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________________ शंका १६ और उसका समाधान स्वर्गीय पं. श्री जयचन्दजाने भी अपने मावार्थमें सुरिजीकृत टीकाका यही आशय प्रगट किया है। जहाँ ज्ञानको मोक्षमार्ग कहा है वहां ज्ञानपदमें श्रद्धान, ज्ञान, चारित्र तीनों यभित है, जैसा कि गाथा १५५ को टोकासे स्पष्ट है, अन्यथा गाथा १५५ से विरोध आजायेगा । श्री अमृतचन्दसूरि लिखते है अथ परमार्थमोक्षहेतु तेषां दर्शयतिपरमार्थस्वरूप मोदका कारण दिखलाते है जीवादीसदहणं सम्म सिमधिममी पाणं। रायादिपरिहरणं चरणं एसो द मोक्खपहो ॥ १५५ ॥-समयसार अर्थ-जीवादि पदार्थोका खान तो सम्यक्त्व है और उन जीवादि पदार्थोंका अधिगम ज्ञान तथा रागादिका त्याग चारित्र है, यही मोक्षका मार्ग है । ___ इस गाथासे स्पष्ट है कि श्री कुन्दकुन्द भगवानने मात्र ज्ञानको ही मोक्षका कारण नहीं कहा, किन्तु सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र तीनको मोक्षमार्ग कहा है। एकाग्तेन ज्ञानमपि न बंधनिरोधकं, एकान्तेन क्रियापि न बन्धनिरोधिका इति सिद्धं उभाम्यांमोक्षः।-समयसार पृ. ११८ टिप्पण, अहिंसामंदिर प्रकाशन अर्थ-एकान्तले जान भी बन्धका निरोधक नहीं है और एकान्ससे क्रिया भी बन्धकी निरोधक नहीं है। ज्ञान और क्रिया दोनोंसे ही मोल होता है। इसीको थी अकलंकदेवने कहा है हतं ज्ञानं क्रियाहीनं हता चाज्ञानिना क्रिया । धावन् किलान्धको दुग्धः पश्यनपि च पङ गुलः ।। -राजबार्तिक १, 1 अर्थ-क्रियारहित ज्ञान व्यर्थ है और अज्ञानोको क्रिया व्यर्थ है। जंगल में आग लग जानेपर बन्धे को मार्गका ज्ञान न होनेसे वह भागता हुआ भी जल जाता है और लंगड़ा मार्गको जानता था भी न चलनेसे जल जाता है। मापने लिखा है कि 'कालकब्धि प्राप्त होनेपर सम्यक्त्वकी प्राप्ति होती है। यहाँ पर 'काललब्धि' देशामर्षक है। अतः काललब्धिसे प्रयोजन अनुकूल द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भाव आदिकी प्राप्ति है। कहा मो हैकालादिलब्धियुक्तः कालद्गम्यक्षेत्रभव-माषादिसामग्रीप्राप्तः । -स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा पृ० १५२, रायचन्द्र मन्थमाला अर्थ-कालादिलब्धियुक्त का अर्थ है-काल-म-क्षेत्र-मव-भाव आदि सामग्रीको प्राप्त । मापने लिखा है कि 'मधिकसे अधिक अर्धपदगल परावर्तन प्रमाण कालके शेष रहनेपर सम्यग्दर्शनको प्राप्त कर लेता है।' जहाँ कहीं भी ऐसा वाक्य आया हो उसका अभिप्राय यह है कि सम्यग्दर्शनके प्राप्त होनेपर अनन्त संसार काटकर अर्ध पुदगल परिवर्तन काल शेष रह जाता है यह सम्यग्दर्शनको सामार्य है। जैसा कि श्री वीरसेन आचार्यने कहा भी है:
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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