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________________ शंका १६ और उसका समाधान ७३३ (ख) व्यवहारनयका स्वरूप क्या है ? (ग) व्यवहारमयका विषय असत्य है क्या ? (घ) व्यवहारनयका विषय यदि असत्य है तो अमावारमक है या मिथ्यारूप है। सापके प्रथम व द्वितीय उत्तरमें (ग) व (घ) खण्डक विषयमें तो कुछ भी नहीं लिखा गया। निश्चय नय व व्यवहारनयका स्वरूप भी स्पष्ट नहीं लिखा। अप्रासंगिक बातोंको तथा जिसमें आर्षग्रन्थविरुद्ध भी कथन है ऐसो पुस्तक वाक्योंको लिखकर व्यर्थ कलेवर बढ़ा दिया गया है। यदि ऐसा न किया जाता तो सुन्दर होता। 'प्रत्येक वस्तु अनेकान्तात्मक है' पद दो शब्दोंसे बना है-(१) अनेक (२) अन्त । 'अनेक' का अर्थ है 'एकसे अधिक' और 'अन्त' का अर्थ 'नर्म' है। इस प्रकार 'अनेकान्तात्मक वस्तु' का अर्थ अनेक धर्मबाली वस्तु' यह हो जाता है। परन्तु वे अनेक धर्म अर्थात् दो धर्म परस्पर विरुद्ध होने चाहिये। श्री अमृतचन्द्र अाचार्यने समयसार स्यावादाधिकारमें कहा है परस्परविरुद्धशक्तिद्वयनकाशनमनेकान्तः । परस्पर विरुद्ध दो शक्तियों का प्रकाशन अनेकान्त है। यह अनेकान्त परमागमका प्राण है तथा सिद्धान्तपद्धतिका जीवन है । इसी बातको श्री अमृतचन्द्राचार्य स्पष्ट करते हैं परमागमस्य जीवं निषिबजास्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयबिलासिताना विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ।। —पुरु० सि. अर्थ-जन्मान्य पुरुषों के हस्तिविधान को दूर करनेवाले, समस्त नयोंसे प्रकाशित विरोधको मथन करने वाले और परमागमके जोबनभून अनेकान्तको नमस्कार करता हूँ। दुर्निवारनयानीकविरोधध्वंसनौषधिः। स्यात्कारजीविता जीयाज्जैनी सिद्धान्तपद्धत्तिः ।।२।। -चास्तिकाय टीका मंगलाचरण अर्थ-स्यात्कार जिसका जीवन है ऐसी जिनभगवानको सिद्धान्तपति, जो कि दुनिवार नयके समूहके विरोधका नाश करनेवाली है. जयवन्त हो । एक वस्तूमें विवाभेदसे दो प्रतिपक्ष धर्म पाये जाते है. अत: उन दोनों घी मेंसे प्रत्येक धर्मकी विवक्षाको ग्रहण करनेवाला पृथक्-पृथक् एक-एक नय है, जिनका विषय परस्पर विरुद्ध है । कहा भी है प्लोयाणं ववहारे धम्म-विवक्खाइ जो पसाहेदि। सुयणाणस्स वियप्पो सो वि णो लिंगसंभूदी ॥२६॥ -स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा अर्थ-जो वस्तुके एक धर्मको मुख्यतासे लोक व्यवहारको साघता है वह नय है। नय शुतज्ञानका भेद है तथा लिंगसे उत्पन्न होता है । णाणाधम्मजुदं पि य एवं धम्मं पि बुथ्वदे भस्थं । तस्सेय विवक्खादो णधि विवक्खा ह सेलाणं ॥२६॥ --स्वामी कार्तिकेय
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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