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जयपुर ( खानिया ) तत्वचर्चा
इस प्रकार विचार करने पर प्रतीत होता है कि जिनाम सर्वत्र माव पारित्र या निश्चय चारित्र पी ही प्रधानता है, क्योंकि यह माया का साक्षात् हेतु है । उस कोने पर साथ मुकाम गुणस्थान परिटी के अनुसार व्यवहार नारित्र होत होता ही है। उसका निषध नहीं है. परन्तु ज्ञानी की सपा स्वरूप रमण की ष्टि बनी रहती है,इसलिये 7 मार्ग उसली पुस्यता है । पापामार्ग का तात्पर्य ही यह है । इस प्रतिभा प्रसंगवश इसी कारी सम्बन्धित और पी अनेक कार आई है। म परन्तु उन सपका समाधान उक्त कथा से हो जाता है अत: यहा' और विस्तार नहीं किया गया है। अंधलिन १/११/23
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अग्रीमाती
१-११-१२
तीनों दौरोंके पत्रकों पर मध्यस्थके साथ द्वितीय पक्षके
तीनों प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर k)" मारनप ण मान
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ममन्त्रालयली 10 प्रश्नकर्ता और मध्यस्थके हस्ताक्षरोंके साथ ता० २२-१०-६३ की बैठकके अध्यक्षके हस्ताक्षर