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________________ जयपुर ( खानिया ) तच्चचचा छन -- सानालरण कोटदर्शनावरण .* ण व ET और जल पर्सन भामिनभाना ... असार उफा बाटिकी श्री पटकमा गम है। जानकरणस्ममणः श्रना मरणस्य चकल. समामा के सानिमामि समता / ... - पूर्वमा ए / २४१. stoney gombo प्रथम तथा द्वितीय दौरके पत्रकों पर मध्यस्थके साथ प्रथम पक्षके पाँचों प्रतिनिधियोंके हस्ताक्षर पुनश्व --- 'पोदामाज्जार र्शनावरणराय सायाम केवल तपासूत्र अध्याय १० सूत्र +- कोपेडन करते हुए बापने यए मुक्ति दी थी कि मोहनीय कर्म का पाय पसवें गुणस्थान पर में होता और ज्ञातावरणादि तीन कयों का पाय गारहवं गुणस्थानके बन्त में शेना है कि पी सेवत जान भी उत्पति कपन के प्रग में पोस्नीय कर्म के लायकी हेतु रूप से नित किया गया है।' इसका उद्या साधमिदिमा उल्लेख करये हुए भी पृज्यपार पाचार्य के वनों द्वारा दिया गा का है। किन्तु व आपत्ति के विरुद्ध नी 4 वन नी स्वयं इस प्रकार तिशते हैं -- इस अवस्य प्राशि के सो उस में प्रतिबन्ध स्माँ पार किया जाना मावस्या है, पयोंकि उन को पूरा बिना इसकी प्राप्ति सम्भव नहीं। ३ प्रतिबंधक कर्मचार। ति से पहले मोहलीय जौ का साय होता है। यपि मोहनीय करें या अवस्थाका सीधा प्रतिपय नहीं करता है तथापि इस माप सुस टिना शेष कमाँ का भाव नहीं होता, इसलिये यहस्ते पी वन्य अवस्था का प्रतिबन्पक माना है। इस प्रकार पोहनीयकामाब होचाने के पश्चात अन्तर्त में तीनों माँ का नाश्च होता है भी तब जाकर मदरस्य अषस्था प्राप्त होता है। प्रत. . .१{ ime annon - 2016Y तृतीय दौर के पत्रकों पर प्रथम पक्षके अन्यतम प्रतिनिधि पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य बीनाके हस्ताक्षर
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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