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शंका ९ और उसका समाधान
५७७ करते हुए और घर में रहते हुए भी आगारी है और जिसके इस प्रकारका परिणाम नहीं बह अनगार है । (ज्ञानपीठ सर्वार्थ सिद्धि पृ० ३५७)। इस अर्थमें अनारको घरमें बैठना नहीं लिखा जन कि वर्तमान अर्धमें अनगारको घर बैठना लिखा है जो आगम अनुकूल नहीं ।
आप लिखते हैं कि 'निश्चय चारित्र होनेपर व्यवहारचारित्र होता है। यदि आपके कथनानुसार निश्चयचारित्रपत्रक व्यवहार चारित्र माना जावेगा तो भावसंयमका सातवां गणस्थान होनेपर वस्त्रत्याग, कैशलोंच, महानत धारण आदि व्यवहारचारित्रको क्रिया होगी, जिसका अर्थ यह होगा निकामmarn वस्त्रधारी के हो जायगा और ऐसा होनसे सवस्त्रमक्ति सिद्ध हो जायगी जिसका दिगम्बर जैन आप ग्रन्थों में खण्डन है। जिनके पूर्व संस्कार बने हुए हैं ऐसे दिगम्बर तो कह सकते है कि निश्चयचारित्रवर्वक उपहार चारित्र होता है, किन्तु जिनको दिगम्बर जैन मार्षगन्यापर श्रद्धा है वे तो यह हो कहेंगे किम केशलोंच, वस्त्रत्याग, महावत आदि ग्रहणके द्वारा मुनिदीशाके होनेपर सप्तम गुणस्यान सम्भव है।
जिसके किंचित् माप भी त्यागरूप चारित्र महो अर्थात् मद्य, माम, मध्र, नयनी त और पांच उदुम्बर फलका त्याग नहीं वे जिनपर्मोपदेशक भी पात्र नहीं है
अष्टावनिष्टदुस्तरदुरितायतनाम्यमुनि परिवर्य । जिनधर्मदेशनाया भवन्ति पायाणि शुरुधियः ॥७॥
-पुरुषार्थसिद्धयुपाय अर्थ-अनिष्ट दुस्तर और पापोंके स्थान इन आठों ( ५ जदंबरफल, मद्य-मांस-मधु )का त्याग कर के निर्मल बुद्धिवाले पुरुष जिनधर्मके उपदेशके पात्र होते हैं ।
मोक्षप्राप्तिका बहुत सुन्दर उपाय थी अमृतचन्द्र सूरिने निम्न श्लोक द्वारा बतलाया है जिसमें निश्चय व व्यवहारको समान रखा है
सम्यक्त्वचारित्रवोधलक्षणो मोक्षमार्ग इत्येषः। मुख्योपचाररूपः प्रापयति परे पदे पुरुषं ॥२२॥
-पुरुषार्थसिहयुपाय अर्थ-निश्चय व्यवहाररुप सम्यग्दर्शन-चारित्र-ज्ञानलक्षणवाला मोक्षमार्ग आत्माको परम पद प्राप्त कराव है गर्थात् निश्चय-व्यवहाररूप धर्म ह्री बन्नसे छूटनेका उपाय है।
नोट-इस विषय में प्रश्न नं. ४ का पवहार धर्म व निश्चध धर्मका विवरण देखिये ।