________________
शंका ८ और उसका समाधान
५२१ (२) दिव्यध्वनिका केवलज्ञान अथवा केवली आमाके साथ कौन सम्बन्ध है? . (३) दिव्यध्वनिका केवलज्ञान अथवा केवलौके साथ सम्बन्ध सत्यार्थ है या असत्यार्थ?
(४) दिब्यध्वनि प्रामाणिक है या अप्रामाणिक ? (५) दिव्यध्वान प्रामाणिक है तो उसकी प्रामाणिकता स्वाश्रित है या कंबलो भगवानको आत्माके
सम्बन्धसे? इनमें खण्ड नं०१,२ ओर ३ का बागने उत्तर नहीं दिया। अन्य खण्डोंका उत्तर देते हुए पद्यपि आपने दिव्यध्वनिको प्रमाण माना है लेकिन उसे स्वाश्रित प्रमाण माना है। यह संभव नहीं है, क्योंकि शब्द जड़ पगलकी पर्याय होनेसे न तो प्रमाणरूप हो सकते हैं और न अप्रमाणरूप ही। शब्दोंकी प्रामाणिकता और अप्रामाणिकता बक्ताके हो आथित हआ करती है। जैसा कि धवल पुस्तक १ पृष्ठ ७२ पर कहा गया है--
वक्तृप्रामाण्याद्वचनप्रामाण्यम् । अर्थ-वचनोंको प्रमाणता वक्ताको प्रमाणतासे होती है।
समन्तभद्र स्वामीने रित्नकरण्डश्रावकाचारमें शास्त्रका लक्षण करते समय उसकी प्रामाणिकता सिद्ध करनेके लिये सर्वप्रथम उसे 'आतीपज्ञ होना बतलाया है। इसी प्रकार आचार्य माणिक्यनन्दीन भी आगमका लक्षण करते समय उसे 'आसवचनादिनिबन्धन' होना प्रकट किया है।
आप्तोपज्ञमनुल्लङ्घयमा टेष्टपिरोधकम् । तत्त्वोपदेशकस्सा शास्त्रं कापथघट्टमम् ॥ ५॥
--स्नकरण्डश्रावकाचार आप्तवचनादिनिबन्धनमर्थज्ञानमागमः ।
-परीक्षामुख अ० २, सू० ९४ . समन्तभद्रस्वामीने देवागमस्तोत्रकी ७८वीं कारिकामें आगमताधित वस्तुका लक्षण लिखते हुए उसके वक्ताको माप्त होना आवश्यक माना है। कारिका इस प्रकार है--
बक्तनाप्ते यद्धेतोः साध्यं तधेतुसाधितम् ।
आसे वक्तरि तद्वाक्यात्साध्यमागमसाधितम् ॥७॥ अर्थ-वक्ता के अनाप्त होने पर जो वस्तु हेतुसे साध्य है वह हेतुसाधित है और वक्ताले आप्त होने पर उसके वचनसे जो साध्य है वह आगमसाधित है।
इसी देवागमस्तोत्रकी ६वीं कारिकामें भगवान महावीरको निदोषता प्रमाणित करनेके लिये समन्तभद्र स्वामोने युषित और शास्त्रसे अविरोधी वकृत्वको हेतुरूपसे उपस्थित किया है । कारिका यह है--
स त्वमेवालि निदोषो युनिशास्त्राविरोधिवाक ।
अविरोधी यदिष्ट ते प्रसिद्धन न बाध्यते ॥६॥ अर्थ हे भगवन् ! भाप निर्दोष है, पोंकि आपके वचन यक्ति और शास्त्र अविरोषी हैं। आपके वचन युक्ति और शास्त्रले अबिरोधी इसलिये है कि आपका शासन प्रमाणसे बाधित नहीं है।
अपने निमित्त कारणको उपेक्षाकर दिव्यानको मात्र स्वभावसिद्ध सूचित किया है वह विचारणीय