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जयपुर ( स्वानिया ) तत्त्वचर्चा यह उस कथनका आशय है जिसे यहाँ अपर पक्षने अपने अभिप्रायको पुष्टिमें उपस्थित किया है । बौद्धदर्शन प्रत्येक क्षणको उत्पत्ति परसे मानता है और उसका विनाश निर्हेतुक मानता है, इसलिए यहाँ उत्पत्तिके समान विनाशको भो परसे सहेतुक सिद्ध किया गया है। किन्तु यह स्थिति जैनदर्शनकी नहीं है, क्योंकि यह दर्शन प्रत्येक व्यको न केवल उत्पादरूप स्वीकार करता है, न वेबल व्ययरूप स्वीकार करता है और न केवल भौव्यरूप ही स्वीकार करता है। किन्तु ये तीनों वस्तुके अंश हैं और प्रत्येक द्रव्य इन तीन रूप है, अतः जहाँ यह प्रोत्यस्वभाव सिद्ध होती है वहाँ वह उत्पाद-व्ययस्वभाव भी सिद्ध होती है, अतः निश्वयसे उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यको पवस्या विसता है, इस दर्शन में यही मानना ही परमार्थ सत्य है। अन्य सब ब्यवहार है।