________________
३१२
पृ०
३५
४०
W
૧
૪૭
४७
४९
४९
५१
५९
६२
६४
૬૪
૬૪
६५
६५
६५
૬૬
६८
ه فا
पंक्ति
२४
११
१
१
१
६
१२
३०
९
२६
१२
७
८३
८३
३३
३३
६
२४
२५
२६
३२
१
७०
७०
७०
७०
७१
३३
७२ २५
८१
८१
६, ९
5
१५
१६
१८
५
२९
८१ २९
८२
५
१०
२५
८५ २६
८५
२९
जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चा और उसकी समीक्षा
अशुद्धि
शुद्धि
पाठनक्रियारूप
उत्तरपक्ष के एक
पठनक्रियारूप उत्तरपक्षका एक
उनका
हो जाते हैं।
दृष्टि से
उससे
अतः
योग्यता के होनेपर
अनिवार्य रूपसे होती है
यह ही
गाथा १०८
सहायक न होने रूपसे
बनाकर
त्रिकामेल
हम मानते हैं
होती है ।
हमारे
निश्चयनममें
अशुद्ध निश्चय नयसे
यह पुद्गल
शुद्ध निश्चयनयसे पौगलिक रागादिका
शुद्ध निश्चयनयसे पौद्गलिक
शुद्ध निश्चयनयसे पौद्गलिक
अपने ऊपर
संधान
और किसीमें
प्रथम भागपर उत्तरपक्षने
० च० ५० ४५-४६ तक
(५-३८)
नियतिनयका
(५-३८)
अपितु
(त० सू० ५-२८ )
उसका
होते हैं ।
इसी दृष्टिसे उसमें
यतः
योग्यता के अनुरूप होनेपर
अनिवार्य रूपसे सहायक नियमसे होती है ।
यह भी
गाथा १०७
सहायक होने रूपसे
बनाकर )
त्रिकालमें
पूर्वपक्ष मानता
होती है। इसका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है
पूर्वपक्ष के निश्चयनय से निश्चयनयसे
यह कि पुद्गल
निश्चयनयसे पौगलिक
रागादिको
निश्चयनय से पौद्गलिक
निश्चयनयसे पौद्गलिक
अपनी मान्यताके ऊपर
संयोग
और किसीने
प्रथम भागपर विचार करते हुए उत्तरपक्षन
० च० पृ० ४५-४६ पर
(५-३३)
अनिय विनयका
(५-३२)
परन्तु
(व० सू० ५-२९)
4
1