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जयपुर सानिया तहानाकी समीक्षाका शुद्धिपत्र अशुद्धि
शुद्धि १-प्रश्नोत्तरकी
१ प्रश्नोत्तर १ को अनुच्छेदमें
अनुच्छेद १ में कर्स-कर्स
कत कर्म उक्त-नमिसिक
उक्त निमित्त-नैमित्तिक भृतार्थ मानता है। इस पर
भूतार्थ मानता है, परन्तु प्रश्नके विषयसे भिन्म
होनेके कारण इसपर यथार्थ कारण और
अयथार्थ कारण और तुतीय दौरके अनुच्छेद में.
तृतीय दौरके अनुच्छेद १ में तृतीय दौरके अनुच्छेदमें
तृतीय दौरके अनुच्छेद २ में अन्त
अन्य वोपपद्यन्ते
वोपपद्यते उपादानमें विपरीत
उपादानमें योग्यताके विपरीत अर्थात् नहीं कर सकती है
अर्थात् नहीं कर सकता है, अन्निवार्यता
अनिवार्यता
उनका परिणतिमें
परिणति उसमें
उसने उसे अनित्य
उसे भी अनित्य स्वनिमित्तिक
स्वप्रत्यय सापक मानना चाहिये।
साधक मानना चाहिए । तथापि जहाँ पूर्वपर्याय.को उत्तरपर्यायकी उत्पत्ति में कारण मानना
अनिवार्य है वहाँ पूर्वपर्याय और उत्तरपर्याय में पूर्वोत्तरभावरूप कार्यकारण मानता ही जममुक्त है। उत्पाद्योत्पादकभावरूप कार्य-कारणा
भाव नहीं। .. उत्पतिमें नियामक . .. उत्पत्ति में सर्वत्र नियामक अनन्तर
अनन्तर ही जो मोहित किया जाता है 'या' जो 'जो मोहित किया जाता है या 'जो मोहित होता मोहित होता है।'.. .
है वह मोहनीय है। . . . कर्मके विषयमें
कर्मकारकके विषय द्रव्यकर्मोदयको
उत्तरपक्षका व्यकर्मोक्ष्यको गाथा८०
गाषा ८७...
उसका
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