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जयपुर (खानिया) तत्त्वचर्चा और उसको समीक्षा
अमृतचन्द्रकृत टीकाओंको उद्धृत किया है उनसे उदासीन निमित्तोंकी भी कार्यकारिता सिद्ध होती है, अकिचित्करता नहीं । क्योंकि इन स्थलोंमें उदासीन निमित्तोंकी भी कार्यके साथ अन्वय और व्यतिरेक व्याप्तिाँ सिद्ध है। इसी तरह सर्वार्थसिद्धि (५-२२) में अपनी योग्यतानुसार परिणमन करने वाले धर्मादिद्रव्योंकी स्वकीय पर्यायरूप कार्योत्पत्ति में कालको जो अनिवार्य उदासीन कारण बतलाया गया है, उससे भी उदासीन निमित्तोंकी कार्यकारिता सिद्ध होती है। सर्वार्थसिद्धिका वह उद्धरण भी पूर्वपक्ष ने अपने द्वितीय दौर में दिया है।
इस तरह जब उपर्युक्त आगमप्रमाणोंके आधारपर प्रेरक और उदासीन दोनों ही निमित्तोंकी उपादानको कार्यरूप परिणतिमें सहायक होने रूपसे कार्यकारिता सिद्ध होती है तो उत्तरपक्षने जो उन्हें वहाँ उपस्थित कर अकिंचित्कर माना है वह आगमबाधित हो जाता है। प्रेरक और उदासीन दोनों निमितोंकी भिन्नताका स्पष्टीकरण पूर्व में किया ही जा चुका है ।
इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धि और इष्टोपदेश तथा उसको टीकाके जो उद्धरण उत्तरपक्षने अपने द्वितीय दौरमें दिये है उनसे यद्यपि प्रेरक और सदासीन दोनों प्रकारके निमित्तोंमें कार्योत्पत्तिके प्रति हेतुकतुरूप कारणताकी समानता सिद्ध होती है। परन्तु उनकी यह समानता पूर्व पक्षको मान्य कार्योत्पत्ति उपादानकारणके प्रति सहायक होनेके आधार पर कार्यकारिताके रूपमें हो जानना चाहिए, उत्तरपक्षको मान्य सहायक न होनेके आधार पर अकिंचित्करताके रूपमें नहीं ।
तात्पर्य यह फि निमित्त चाहे प्रेरक हो, या उदासीन, दोनों ही उपर्युक्त प्रमाणों के अनुसार कार्योस्पत्तिमें उपादानभूत कारणके प्रति सहायक होनेके आधार पर कार्यकारी ही सिद्ध होते हैं। दोनों या दोनोंमेंसे कोई भी निमित्त वहाँ उपादान भूत कारणके प्रति सहायक म होने रूपसे अकिंचित्कर सिद्ध नहीं होते । प्रकृत विषयका उपसंहार
प्रकृत विषयमें जो तथ्य सामने आते है वे इस प्रकार हैं
१. उत्तरपक्षने पंचास्तिकाय गाथा ८८ के आधार पर जो निमित्तकारणके प्रेरक और उदासीन दो भेद स्वीकार किये हैं उन्हें पूर्व पक्ष भी स्वीकार करता है।
२. उत्तरपक्षने सर्वार्थसिद्धि (५-२२) के आधार पर प्रेरक और उदासीन दोनों ही निमित्तोंमें जो हेतुकर्तृत्व मान्य किया है उसे भी पूर्वपक्ष स्वीकार करता है।
३. जहाँ उत्तरपक्ष हेतु कर्तृत्वके आधार पर प्रेरक और उदासीन दोनों ही निमित्तोंको अविचित्कर मानता है वहाँ पूर्वपक्ष उसी हेतुकर्तृत्वके आधार पर दोनोंको कार्यकारी स्वीकार करता है।
४. उत्तरपक्षने दोनों निमित्तोंकी अकिंचित्करताको सिद्ध करने के लिए जो उनके लक्षण दिमे है पूर्वपक्षने उनकी कार्यकारिताको सिद्ध करने के लिए उनसे भिन्न उनके लक्षण प्रस्तुत किये हैं और जो आगम प्रमाणोसे समर्थित है।
१. देखो, त.च. पृ० ५ । २, देखो, त० चपृ०७।