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________________ गणिप्रणितः ] श्रीयुगादिदेवस्तवः | तह अडसय कणवीर पुष्फि निअठाणा जलणिईं तह सगवार पहे गिम्मि जायइ तुह झाणि ॥ २३ ॥ अवचूरिः । कलिकलिंत चालइ, फेस्कार मेल्हि आवंतु, किसी परि जाणइ, गाजंति गडगडत, मेघजिम धडकंति, वीज जिम झबकंति, गात्र भिरडंति भीडंति, हाड गूड करडंति, शोषंति, मूआ मडां चबडंति, चाटंति, बाढंति, चउद भवन फोडंति, गिरिशिखर त्रोडन्ति, कोपिं ज्वाला प्रज्वलंति, कानं कुण्डल झिगमिगंति, कांति झबकंति, सात समुद्र सोसंति, चूचक्र चालंति, बहु दोष निग्रहति, चालि हो स्वामी ! खोडिया खेत्रपाल ! ईश्वर जगन्नाथ तणा पुत्र क्षण वार एक तिहां हुंता चालि उज्जेणीनगरी अहूठ पीठ हरि, सिद्धदेवी सिद्धवड, सिद्धखेत्र, तिहां हुं तु उभी चाविलि चालंति, घुघरि वाजंति, अरहठ माला पावडी पाडंति, शाकिनी शीहारी तणा गर्भ गालंति, भोगा मारंति, बाप वीर वीराधि वीर हाकिउ वली प्रसंशिओ, बोलि लाइउ, लागि चलाविउ, चालि ८४ दोषनिग्रह, मनपवनवेगिं चालि दुष्ट दोष जाणि पाताल, घालि उलकरि, छिदम करि, जाण करि, विन्नाण करि, वेध करि, अपवेध करि, चाचरि जइ, मंडल जइ घालि, रूप परावर्त करि हासि, रोइ, छल जोइ, छिदम जोइ, डाकिनी बोधि, शाकिनी बांधि, मोगू बांधि, मोगी भूत बंधि, बांधि करि तोरा पाय तलिं घालि बाप प्रचंड वीर खोडिया खेत्रपालनी शक्ति फुरइ || (३६७ ) प्रथम १०८ होमः पश्चाद् वार २१ कणयरी, २१ गुग्गलक गोली २१ उडद तेल चोपडी कृष्णचतुर्दशीदिनेऽभिधानं गृहीत्वा पात्राग्रे होमः । चदशी सात लइ होमः क्रियते क्षेत्रपालादयो यांति । तथा १०८ कणवीर :रविदिने उपरि रहो मुंकाविरं ते सर्व पाकमध्ये क्षिप्यते दोषनाशः | १०० कूपवारि-धोबीनुं वारि, चर्मकारनुं वारि, कुंभारनुं वारि, सिराणियानुं वारि सूत्रधारनुं वारि, एभिः स्नानं कार्यते दोषनाशः ॥ २३ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.090206
Book TitleJain Stotra Sandohe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size8 MB
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