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जैनस्तोत्रसन्दोहे
ॐ नमो इंदग्गि मंति पुण पासह मंतिण अभिमंतिअ सोवीरनीर पसमइ जह वन्हिण ।.
अरिहदहक्खरिजाव होइ लच्छी कुलमंदिर
पायपसाइ तुह जिणंद ! नरवंछियसुंदर ! ॥ २१ ॥ पण जंती वक्खालनीर अंबिल इकवीसा
निअकुलवंतरदोस दमइ तक्खणि निस्सेसा । 'मुहमंदिर ' अभिमंतिऊण मुहमंदिरे मंति सयल सहाजणरंजणिक्क वयणुक्करसत्तिई ॥ २२ ॥ अटुत्तरसयगयणजड्डी बिल्लीतरुकंटय
खित्तिभिमंतिय वार सत्त नालयधु असंगय । अवचूरिः ।
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ॐ नमो भगवते श्रीपार्श्वनाथाय ज्वल २ प्रज्वल २ महाग्नि स्तम्भय २ स्वाहा ।। ॐ क्रौ ठः ठः धारा दीयते आगि उल्हाइ ॥
स्वाहा |
वार २१ अभिमंत्र्य
२१ ॥
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ॐ ह्रीं यं रं लं वं अहं हंसः जिनार्चनसमये १०८ जापे लक्ष्मीप्राप्तिर्भवति । ॐ ह्रीँ श्री कीर्तिमुखमन्दिरे स्वाहा ।। " ॐ ह्री एँ क्लीँ महालक्ष्म्यै नमः स्वाहा ॥ लक्ष्मीप्राप्तिर्भवति ॥ २२ ॥
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दिनप्रति वार १०८ जापेन
खेजडी कांटा १०८, बीलीना कांटा १०८, एक त्र कृत्वा मन्त्रेण सप्तवारमभिमन्त्र्य करवडामुखं मुद्द्रीयते, नालुअधूमो गुह्ये यथा याति तथा क्रियते । अभिमन्त्रणमन्त्रोऽयम् -
[ भीशुभसुन्दर
ॐ नमो खोडिया क्षेत्रपाल ! हाथि कपाल बाबर केश गलइं रुंडमाल अहूसार मोहतणा आभरण, वज्रांगि बेसण निश्वास आसण,
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