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(३६०)
जैनस्तोत्रसन्दोहे।
[श्रीशुभसुन्दर
गवरिमंति घणपीड टळइ कारणि अभिमंतिअ
घट्टितक्किपयपउर हवइ रविदिणं भोअंतिअ । कनकबीअपूइकन्न सुणह विसबेग विणासइ
भीनमहादेविमंति झत्ति ण वाउ पणासइ ॥१२॥ कणयरिमणसिलअक्कामूलकुंकुमगोरोअणगोली निम्मिय तिलयजोअ जणमाणसमोहण ।
अवचूरिः। " ॐ नमो गवरी कति इक पास महादेवनई दोरडा जाप गंठि अंचलि पीड महादेव पासि महादेव करि करि कलकली जाए गठि अंचलि गली " अडीआ छाणानी राख वार ७ अभिमंत्र्य स्त्री पोहिं अंचल चंपाविइं राखसि-यदि तस्या दक्षिणस्तदात्मीयवामाञ्चलोपरि रक्षा ध्रियते । यदि तस्या वामस्तदात्मीयदक्षिणः पीडा याति । “ॐ कारणि प्रसव ठः ठः ठः स्वाहा ” वार २१ अभिमन्त्रि घसि छासि सीरामण दीइं रविावरि, स्तन्यमायाति निश्चयेन । कनकबीजान्येकैकवृद्ध्या ५० दिनानि यावत्तदन्वेकैकहान्या ५० दिनैः सर्वाणि मुच्यन्ते एतावताऽलर्कश्वा शृगालविषं याति। वन्ध्याककर्कोटिका ढंके दीयते । उत्तुंग तोरण सर्व-कुंकूडलंगोर ढालइ महादेवना हइ कसण ढलि जाइ बलि छिनु मुसल छिनु काखबिलाइ छिर्नु ऊगत छिर्नु पाठु छिर्नु भामर छिर्नु काला होडी छिर्नु वाय छिनुं गड छिर्नु गुंबड छिनुं चोरासीसो दोष छिर्नु अष्टोत्तरसो व्याधि छिनि २ भाग महादेव मंत्रण विष्णुचक्रेण रुद्रहस्तेन छिनि २ पालिकया उज्यते ॥ १२ ॥
कुंकुम-गोरोचन-कणयरी-मणसिल-श्वेतार्कमूलानि समभागेन सम्मील्य गुटिकां कृत्वा मेळयातवेलायां १०८ वर्द्धमानविद्ययाभिमंत्र्य तिलकं क्रियते राजवश्यम् । ऋजुमत्स्रीडूचकसिचयकज्जलकारिकार्थकादि माही घाली गुटिका करी पतिभक्षणे पतिवश्यम् । गोरोचन टांक २ पोटली बांधी ऋतुसमये द्वारे त्रिदिनी यावत् स्थाप्यते । नीतिकालं विमुच्य तदन्वन्य
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