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________________ गणिप्रणितः] श्रीयुगादिदेवस्तवः । (३५९) ईलीमंतभिमंतिऊण चाउलजलपानइं __ हरिसा जंति तिसंझि बीअगुणणेणं मानइं ॥१०॥ 'ॐ नमो हनुमंत ' मंति बरहल्लि पणासइ गोल्हामूलिई कंठमाल तह चीरिअ पासइं। आमल आरण तुल्ल भागि गयमुत्तिं भाविइं नासइ कस तुह पायकमलि सेवइ निअभाविइं ॥११॥ अवचूरिः । इणइ मंत्रि २१ वामकर्णे कथ्यते मीणक उत्तरति । ॐ नमो ईअले पीअले हेमवंतनिवासिनी निजजलगंधा वसरिसगंधा नासा हरिया वाता हरिसा होता कृष्णा होता नंदिका सिणगारी सुभटकरा मोरो पीठ जो न प्रकाशइ चतुर्बाह्मण प्रधात कालकालो महाकाल: पत्राणि ह्रां ह्री फुट फुट् स्वाहा” वार २१ जलचुलुक ३ मंत्री पीयते हरिषा यांति । 'ॐ नमो ईली तेली नीली हेमपंथनिवारिणी नाका हरिसा वाता हरिषा कृष्णा नर धोंधका मोरी विद्या न प्रकाशइ चतुर्ब्राह्मणघातक कालि ! २ महाकालि! व्यंतरि ! स्वाहा" मोरी विद्या प्रकाशइ ते कुलि हरिस नही' २१ गुणयेत् त्रिसंध्या, हरिषा यांति ॥ १० ॥ __" ॐ नमो ब्रह्मा कुपुत्र काटंत कुटंत तरकु हनुमंत लंक छोडी पदो लंक जाइ, माणस छोडी भंडिआ खाइ खाइ" एनं मंत्रं भणित्वा उदरोपरि विंगणं मुक्त्वा ७ चीयते सप्तवारं पश्चात् यथेष्टं चीयते बरहलं याति । शेषं गुरुगम्यम् ॥ गोल्हामूलं संघृष्य दीयते मध्ये लेपश्च कंठमाला याति । 'ॐ नमो जत्ता विचित्ता सर्वरोगविसंभविपत्ता समरंती सुह संति करंता हठइ रोग मूल सवि टालंती, तिहुयणमेहल सुनि करंती झंझावाइ तक्खणि जाइ नामेण न जाइ तु विसविसणं' चीरिकायामयं मन्त्रो लिखित्वा गले बन्धनीयं कंठमाला याति ॥ आमलां काचां आणी कलिया काढी सूकवीई, वाटी चालीई, आरणां छाणानी राख बाली नान्ही सूक्ष्म कीजइ सममात्रा ए बे वानां एकठां कीजइ, गजमूत्र भावना २१ तदभावे मानवमूत्र, पश्चात्तेनौषधेन नासो दीयते कसरोगा याति ॥११॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.090206
Book TitleJain Stotra Sandohe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size8 MB
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