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________________ (३५८) जैनस्तोत्रसन्दोहे। [श्रीशुभसुन्दर- . रक्खसदंडमनाममंति जर जाइ दुरुत्तर __ पाछूतंतिइ रत्ति जह चेव सउत्तर । ईसरनेत्त भुअंगवल्लि वायसमल रक्खणि __ तीयजरं तेणेक सत्तमिरि अंजणि नित्तणि ॥८॥ तुलछीदलनवमिरिअयोगि एगंतर नासइ पुण पूगीफलभंगराजि नवि आयइ पासइ । सीसकवेअण दूरि जंति धवली एकक्खरि तह तुह कामिअकामकुंभ ! पयतलि जगभित्तरि ॥९॥ 'ॐ नमो जूनलिअजारि ' इअ मंत पहाविई मीणइ मीणिअ टोर होइ नीरोगि सहावइ । अवरिः ।। "ॐ रत्नमध्यस्थितो द्योतदंडमो नाम राक्षसः । तस्यैकाहिकद्वयाहिक-त्र्याहिक-चतुर्यक-विषमज्वरं विकटज्वरं, वेलाज्वरं तेन बन्धेन बन्धामि येन वासुदेवेन बलिबद्धः रक्ष रक्ष महाबल स्वाहा” २१ वार जापः ३, ३, वार एकैक गांठि बान्धिइ ७ गांठि देइ पछई त्रिणि वार कही दोरु बांधिइ काकेऽनुत्थितेषु ज्वरगृहीतेन गुरोराहानं काये, पाछउ राउल! राउल ! । गुरुभेणति कउण छइ ? स कथयति गुरु गोसामि ! एकांतरादि । गुरुर्वक्ति ज्या, ज्या, इति पश्चाद् ज्वरगृ. हीतेन गम्यते । पश्चादनवलोकनपूर्व दिवसोदयं (ज्वरवेलां ) यावदमिलनं च । अडागरपत्रत्रयवीटिकां कृत्वा चूर्णकस्थाने द्विकसकृत् क्षिप्त्वादीपा. लिकादिने दीयते तृतीयज्वरो यात्येव । रवौ कृतद्वयकैकटंक विष्टां सप्त मरिचानि समील्य गुटिकांजनेन तृतीयज्वरो याति ॥ ८ ॥ तुलसीपत्र ३ मरीच ९ भक्षणे वेलाज्वरो याति । पक्कपूगीफलखण्डभक्षणे भंगरापत्रभक्षणे वाऽपि ज्वरनाशः। खटिकया भाले ५। ९।७ ए. तल्लिखने सीसका यान्ति ॥ ९ ॥ ॐ नमो जूनली जारिमालि मूल प्रसरंति अमीअ झरती राम सीता एहवी प्रीति जाइ रे विसट्टि" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.090206
Book TitleJain Stotra Sandohe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size8 MB
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