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विरहितः ] श्रीवैराट्यदेवीस्तवः। (३४९) दिसि बंधउ अह दिसि बंधउ बंधउ नह पायालु ।
अम्हि अरिहंत दिक्करा वोलउ खंधिहि जालु ॥ १६ ॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ। तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु पनगा उँ ठः ठः ठः
स्वाहा । एवं ॥१७॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु भूअगा ॥ १८ ॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु रक्खगा . ॥ १९॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु जाइणी ॥ २० ॥ देवदेवस्स जं. छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु साइणी ॥ २१ ॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु डाइणी ॥ २२ ॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु चोरगा ॥ २३ ॥ - देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु बालगा ॥ २४ ।।
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