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जैनस्तोत्रसन्दोहे
[श्रीधर्मघोष
व्यन्तराणां भेदाः
पिसाय-भूअ-जक्खा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा । महोरगय गंधब्वा वणट्ठ रयणाइसयहिट्ठा ॥३२॥ अणपण्णी पणपण्णी इसिवाई भूअयाइसे कंदे ।
महकंदे कोहंडी पयगे रयणाइमसयंतो ॥३३॥ ज्योतिष्क-वैमानिकप्रकाराः
पंचविहा जोइसिआ ससि–रवि-गह-रिक्ख-तारयाभेआ। बारसहा कप्पसुरा ऽकप्पाइआ दुदसविहा उ ॥३४॥ सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद-बंभ-लंतयया । सुक–सहस्साराणय-पाणय-आरण-अचुअकप्पा ॥३५॥ सुदरिसण-सुपडिबद्धे मणोरमे सव्वभद्द-सुविसाले।
सुमाणस-सोमणसे विअ पिअंकराइच्चणुत्तरया ॥३६॥ प्राणाः
इग-बि-ति-चउरिंदिअ सन्नि असन्नि चउ छग सग? नव दस य। पाणा ऊसासाउग पणिंदि तणु-वइ-मण-बलित्ति ॥३७॥ पूरंतो इअ भमिओ तुमे अदिम्मि नाह ! दिठ्ठोऽसि ।
संपइ मुत्तिजिअत्तं देहि जहिं पनरविह सिद्धा ॥३८॥ पंचदशसिद्धभेदाः
तित्थातित्थ जिणाजिण गिहि-अण्ण-सलिंग-थीनर-नपुंसा । पत्तेअ-सयंबुद्धा बुद्धबोहिक्कणिगसिद्धा ॥३९॥ ते साइअणंतठिई अकाय-तणु-भवठिई अ कम्मवई । दिंतु अजोअणिकुलठिईणंतविरिअधम्मकित्तिठिई ॥४०॥
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