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जैनस्तानसन्दाहे श्रीधर्मावर .. गुग्गुलि–गलोअमाई छिण्णरुहा कटुओ बहुलछल्ली ।
इचाइ खल्ल अणेगे भेया उ अणंतकायाणं ॥१५॥ प्रत्येकवानस्पतेर्लक्षणं प्रकाराश्चः--
जेसिक्किक्कि सरीरे इक्विक्कु जिउ उ ते उ पत्तेआ । फल-फुल्ल-मूल-पत्ता तण-कट्ठा हरिअबीअकुली ॥१६॥ सिअवत्ताई पिहु पंखुडीअजिआ जाइमल्लिआइ पुष्षो ।
नालिअबढेगजिआ दुजिआ संघाडधन्नाई ॥१७॥ अवस्थितिः
पत्तेअवणे मुत्तुं पण पुढवाई दुहा सुहुमथूला।
सुहुमा उ सव्वलोए संति निलागणिजलअगिज्झा ॥१८॥ द्वीन्द्रियप्रकाराः
चंदण-संख-कवड्डय-लहकालस-सुत्ति-जलअ-गंडोला ।
मेहर-इअरकायर किमिमाइ वहाइ बेइंदी ॥१९॥ त्रीन्द्रियजीवभेदाः
मंकुण-जूआ-पिसुआ कुंथुद्देहिअ-पिपीलि-मंकोय । गद्दह्य-चोरकीडा चंचड-गोगीड-धण्णाडा ॥२०॥ गुम्मिय-गोमयकोंडा इल्ली घियबल्ली जा उ अ महल्ला । तिण-गोवालिअ-इलिआ तेइंदिअ इंदगोवाई ॥२१॥ चतुरिन्द्रियजीवप्रकाराः
चउरिंदि मछु-कुत्तिम दंस-मसा-सलम-कोकिला कविला । कंसारि-डोलि-विंछिम-दंकण-भामरी ममर-विभा ॥१२॥
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