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सूरिविरचितम् ]
श्रीगौतमस्तोत्रम्
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श्री जिनप्रभसूरिप्रणीतं श्रीगौतमस्तोत्रम् |
जम्मपवित्तियसिरिमगहदेस अवयंसगुब्वरगामं । गोयमगुत्तं सिरिइंदभूइगणहारिणं नमिमो ॥ १ ॥ वसुभूइकुलविभूसण ! जिट्ठाउडुजाय ! कंचणच्छाय ! | पुहवीउअरसरोरुहमराल ! तं जयसु गणनाह ! || २॥
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( २३५ )
समचउरंसागिइमय ! संघयणं वज्जरिसहनारायं । कलयं ते कावि सिरी देहे तुह सत्तकरगे ॥ ३ ॥ सह दसदिएहिं जणं मज्झिमपावाइ तुह कुणंतस्स । माणो बहु बोहिलो अहेसि तुह वीरदंसणओ ॥ ४ ॥ वेयपयत्थे तुह जीवसंसए जिणवरेण विच्छिन्ने । निक्खतो तं पहु ! लहु पंचहिं सह खंडिअस एहिं ॥ ५ ॥ वइसाहसुद्धइक्कारसीह पुव्वण्हदेसकालंमि । महसेणवणे पण्णासवच्छरंते सि पव्वइओ ॥ ६ ॥ गिहिभावे जं तुमए सम्मं आराहिओ महावीरो ।
भासेण तमेव सेवसे समणभावेवि ॥ ७ ॥ पण्णासलिले खित्तो जिणेण तिपइक्क तिलबिंदू ते । विथरिओ तह तक्खण दुवाल संगप्पणयणेण ॥ ८ ॥
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