SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाश् । सूरिविरचितम् ] श्रीपार्श्वनाथस्तवनम् (९५) दुग्गे मग्गे लल्लक्कतक्करे रुद्ददप्पबहुसप्पे । तुह नामसिद्धमंतेण जंतुणो जंति विगयभया ॥ १५ ॥ निंदू पयारविंदं वंदंती तुम्ह थिरपया होइ । वंझा तं झायंती झत्ति सुपुत्ते लहइ महिला ॥ १६ ॥ उग्गोवसग्गवग्गा कुग्गहविग्गहअवग्गहाई य । पसमंति समग्गा तेसु जेसि तं भमसि देसेसु ॥ १७ ॥ हयकाससास ववगयविलास धुयतास दसदिसिपयास । नयपूरियास कुवलयनगास सठकमठमयनास ॥ १८ ॥ सयलाहिवाहिविसहरगहगुरुभयभीयजणकयासास। सासयपयकयआवास पास! मं पास पयप्पणयं ॥ १९ ॥ बहुभवरीणा दीणा सिरिहीणा पासजिण ! समल्लीणा । मणुया नंदंति दुयं तुह सुहसत्थाइ पायजुयं ॥ २० ॥ इय सव्वभव्ववंछियकारय ! तारय ! दुहोहजलहीओ। भीओ भक्भवणाओ इमं तुमं विन्नवेमि अहं ॥ २१ ॥ खुद्दोवद्दवविद्दवदच्छमविच्छिन्नदिनजणवंछं । पासजिण ! वल्लहं ते पुणो वि तुह दसणं हुजा ॥ २२ ॥ [३४] श्रीजिनवल्लभमरिप्रणीतं पञ्चकल्याणकस्तोत्रम् । महोपाध्यायश्रीशान्तिचन्द्रगणिगुरुभ्यो नमः । सम्म नमिऊण जिणे चउवीसं तेसि चेव पत्तेयं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.090206
Book TitleJain Stotra Sandohe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy