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________________ ( ९४ ) जैनस्तोत्रसन्दोहे [श्रीजिनवल्लभ हयदुरियदाहमाहप्पपसरनिव्ववियभवियसंदोहं । . परमामयरसवरिसं वसुपहु तुह दंसणं जमिह ॥ ४ ॥ हे पास ! पसिय सियदंतपंतिकंतिप्पयासियदियंत ! । भयवंत ! भयंत ! पसंत ! कंत ! दंतिंदिय ! जिणिंद ! ॥५॥ फारुप्फुल्लं तुह उवरि फणिफणासत्तयं फुरंतं मे । कयसत्ततत्तसंखा वक्खाणखणं व पडिहाइ ॥ ६ ॥ उवरि परिफुरियफणिवइचूडामणिकिरणरइयसुरचावं । अइभीसणभवदवतवियभवियवणपसमणसमत्थं ॥ ७ ॥ कयकुनयकमलमलणं वयगजलं जणियभुवणयलहरिसं । विकिरंतं नवजलहरसरिसं तं पास ! पणमामि ॥ ८ ॥ जे खरजरजजरिया खयखीगा सूलसल्लिया मणुया । दढकुटुनटुनकुट्टनहमुहा चक्खुपरिहीणा ॥ ९ ॥ तेवि तुह सरणसुंदररसायणं काउमाउरसुविज ! । सुरसुंदरनयणाणंद ! देहसोहा लहु लहन्ति ॥ १० ॥ गुरुकोवफारफुक्कारभासुरो फणिवई वि फुल्लफणो । चित्तंमि तुमं जेसिं तेसिं कीडु व्व होइ फुडं ॥ ११ ॥ कयविकयरूवभीसणपभूयभूएहिं जेऽभिभूअप्पा । गद्दब्भसदसंदभनिभरुब्भरियभुवणयला ॥ १२ ॥ तुह नामभद्दमुद्दामुदियदेहा जिणिंद ! ते वि दुअं । संपत्तनियसरूवा हवंति बहुलोयकयपूआ ॥ १३ ॥ जे वि गयजक्खरक्खसखुद्दासुरजक्खखित्तवालाई । ते वि तुह गुत्तकित्तणमित्तेणं झत्ति नासंति ॥ १४ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.090206
Book TitleJain Stotra Sandohe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size8 MB
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