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जैनस्तोत्र सन्दोहे
कम्मवाय अट्टम इगकोडि सहस अस्सी | नवमे पच्चक्खाणप्पवाइ लक्खाग चुलसीइ ॥ १४ ॥ विज्जणुपवाय दसमे पुव्वे इगकोडि दस यं लक्खाई । इक्कारसे अवझे पुव्वे पयकोडि छवीसा || १५ | पाणाउणाम पुब्बे वारसमे छपण लक्ख इग कोडी । किरिआविसालपुत्रे तेरसमे कोडि नवगंमि ॥ १६ ॥ तह लोग बिंदुसारे चउदसमे पुग्वि बारकोडीओ । लक्खा तह पन्नासं इअ सव्वंगे पयपमाणं ॥ १७ ॥ एयं पयप्पमाणं दुवालसंगस्स सुअसमुद्दस्स । नेयमुवंगाईणवि सुआण समयानुसारेणं ॥ १८ ॥ उप्पन्न विमल केवल - नाणेणं जिणवरेण वीरेण । परमत्थरूवअत्थो निदंसिओ सव्वसुत्ताणं ॥ १९ ॥
(९०)
सुतं तु गणहरकयं तम्हा सव्वप्पयत्थसंजुत्ता । पणमह जिनिंद वीरं भवजलहीबारमिच्छंता ॥ २० ॥
इअ नंदिसुत्तविवरण -
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मणुसरिऊणंगपयपमाणमिणं ।
जिणगणहरोवइ
[ महाकवि
लिहिअं जिणभद्दसूरीहिं ॥ २१ ॥
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