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________________ ( ८८ ) तं सुयनाणं नाणं नासर सवन्नुणो गुणे हाणि । जय तिजयत्तिकित्ति दावियत्तिं सुहपवित्तिं ॥ ३ ॥ अंगाणंगनिबद्धं सुपसिद्धं नियमोहसंबंधं । सुअनाणमन्नाणं सन्नाणं जयउ जीवाणं ॥ ४ ॥ ता कुसमयमयवग्गो भव्वमणोकाणणंमि परिभमई । जाणज्जवि जिणपवयणहरिणो सदं निसामे ॥ ५ ॥ मइसुयमणोहिकेवलनाणाणि कुणंतु वो सिवसुहाणि । सन्नाणचरणदंसगगुगाण हाणिं च निहणसु ॥ ६ ॥ मह सुयमसेस सव्वाणप्पवेसं जनस्तोत्रसन्दोहे [ श्रीजिनभद्रसूरि भुवणजाणियचुज्जा से गुणाणं च पुज्जा । कयकुसमयचागो सुद्धसद्धम्मरागो पवरगुणमणीणं भायणं जेण होइ ॥ ७ ॥ [ ३० ] श्रीजिनभद्रमूरिविरचितं श्रीद्वादशाङ्गी पदप्रमाणकुलकम् । नमिऊण जिणं अंगाण पयप्पमाणं अहं पयंपेमि । तत्थ पयमत्थ उवलद्धि जत्थ किर एवमाई ॥ १॥ अट्ठारस छत्तीसा बावत्तरि सहस तह य अणुक्कमसो । आयारे सूअगडे ठाणंगे चेव पयसंखा ॥ २ ॥ समवाए अपमाणं लक्खो एगो सहस्स चउआला । भगवइए पयसंखा दो लक्खा सहस्स अडसीइ ॥ ३ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.090206
Book TitleJain Stotra Sandohe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size8 MB
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