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________________ प्रबुद्ध-साधक ७७ योगवासिष्ठमें जिनेन्द्रकी दिगम्मर और शान्त परिणतिसे प्रभावित हो रामचन्द्र अपनी अन्तरंग कामना इन शब्दों में व्यक्त करते है-- "नाहं रामो न मे वाञ्छा भावेषु न च मे मनः । शान्तिमास्थामिच्छामि स्वात्मन्येव जिनो यथा ।।'' भत हरि अपने घरायशतकमें अपनी आत्माकी आवाज इन शब्दोंमें व्यक्त करते हैं-"प्रभो, वह दिन फर आएगा जब मैं स्वतन्त्र, निस्पृह, शान्स, पाणिपात्रभाजी, दिगम्बर मुनि ब क नाश कला में समर्थ होऊंगा।" ____ भारतीय इतिहासके उज्ज्वल रत्न चन्द्रगुप्त, अमोघवर्ष सदृशा नरेन्द्रोंने आरमाकी निर्मलता और निराकुलताके सम्पादन निमित्त स्वेच्छासे विशाल साम्राज्योंका त्याग कर दिगम्बर साधु की मुद्रा धारण की थी। स्टीवन्सन नामक आंग्ल महिला लिखती है.--"वस्त्रोंसे विमुक्त होने के कारण मनुष्यके पास अन्य अनेक चिन्ताएं नहीं रहती । उसे कपड़े धोने के लिए पानीकी भी आवश्यकता नहीं है। निम्रन्थ लोगोंने-दिगम्बर जैन मुनियोंने भले-बुरेके भेद-भावको भुला दिया है। भला वे लोग अपनी नग्नसाको छिपाने के लिए वस्त्रोंको षयों धारण करें।" एक मुस्लिम कवि तनकी उरयानी-दिगम्बरत्वसे प्रभावित हो कितनी मधुर घात कहता है "तनको उरयानीसे बेहतर है नहीं कोई लिबास । यह वह जामा है कि जिसका नहीं उलटा सीधा ॥" शायर जलालुद्दीन रूमीने सांसारिक कार्योंमें उलझे हुए व्यक्तिसे आत्मनिमग्न दिगम्बर साधुको अधिक मावरणीय कहा है। वे कहते हैं कि वस्त्रधारी 'मात्मा के स्थानमें 'धोबी' पर निगाह रखता है। दिगम्वरत्वका आभूषण दिव्य है "मस्त बोला मुहतसिव से कामजा, होगा क्या नंगे से न ओहदायरा । है नजर धोबी पे जामापोश की, है तजल्ली जेवरे उरियांतनी।" १. एकाको निस्पृहो शान्तः पाणिपात्रो दिगम्बरः । कदाह सम्भविष्यामि कर्मनिम्लनक्षमः ।। Being rid of clothes one is also rid of a lot of other worries. No water is needed in which to wash them. The Nirgranthas have forgotten all knowledge of good and evil. Why should they require clothes to hide their nakedness.' Heart of Jainism (१० ३५.)
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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