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________________ संयम बिन घड़िय म इक्क जाहु "मध, मांस, मा. लिभोजन और पीपल, का, क, ड्रामा कर सदृश प्रस-जीवयुक्त फलोंके सेवन का त्याग, अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु नामक अहिंसाके पथमें प्रवृत्त पंच परमेष्ठियोंकी स्तुति, जीवदया तथा पानीको वस्त्र द्वारा भली प्रकार छानकर पीना यह आठ मूलगुण हैं।' जैसे मूलके शुभ और पुष्ट होनेपर वृक्ष भी सबल और सरस होता है, उसी प्रकार मूलभूत उपर्युक्त नियमों द्वारा जीयन अलंकृत होनेपर साधक मुक्तिपथमें प्रगति करना प्रारंभ कर देता है। मद्य और मांसको सदोषता तो धार्मिक जगत्के समक्ष स्पष्ट है, किन्तु आजके युगमें अहिंसात्मक पद्धति से मक्षिकाओंका बिना विनाश किये जब मधु तैयार होता है, तब रघुत्यागको मूलगुणोंमें क्यों परिगणित किया है यह सहज शंका उत्पन्न होती है ? स्वयं गाँधीजी ऐसे मधुको अपना नित्यका आहार बनाये हुए थे। हमने १९३५ में बापूसे मषु त्यागपर उनके वर्घा भाश्रममें जब चर्चा की, तब उन्होंने यही कहा था कि पहले जीववध पूर्वक मधु बनता था, अब अहिंसात्मक उपायसे वह प्राप्त होता है, इसलिए मैं उसको सेवन करता है। इस विषयकी चर्चा जब हमने चारित चक्रवर्ती दिसम्बर जैन आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज चलायी और प्रार्थना को, कि अहिंसा महाव्रती आचार्य होने के नाते इस विषय में प्रकाश प्रदान कीजिये तव आचार्य महाराजने कहा कि "मक्खी विकलत्रय जीव है, वह पुष्प आदिका रस खाकर अपना पेट भरती है और जो वमन करती है उसे मधु कहते हैं । उसका वमन खाना कभी भी जिनेन्द्रके मार्ग में योग्य नहीं माना गया । उस में सूक्ष्म जीव राशि पायो जाती है ।" भाशा है मधुको मधुरतामें जिन साधर्मों भाइयोंका चित्त लगा हो, थे आचार्य परमेष्ठीके निर्णयानुसार अहिंसात्मक कहे जानेवाले मधु को वमन होने के कारण, अनंतजीव-पिण्डात्मक निश्चय कर सन्मार्गमे ही लगे रहेंगे। राविभोजनका परित्याग और पानी छानकर पीना-यह दो प्रवृत्तियाँ जैनधर्मके माराधकके चिन्न माने जाते हैं। एक बार सूर्यास्त होते समय मदासमें अपना सार्वजनिक भाषण बन्दकर रात्रि हा जानेके भयसे गांधोजी जब हिन्दके सम्पादक श्रीकस्तूरी स्वामी आयंगरके चाय जानेको उद्यत हुए, तब उनकी यह प्रवृत्ति देख बड़े बड़े शिक्षिसोंके चित्तमें यह विचार उत्पन्न हुआ कि गांधीजी वावश्य जैनशासनके अनुयायी हैं। जैसे ईसाइयोंका चिल्ल उनके ईश्वरीय दूत हजरत मसीहकी मौतका स्मारक क्रॉस पाया जाता है अथवा सिक्खोंके केश, कृपाण, कड़ा आदि वाद्य चिह है उसी प्रकार अहिंसापर प्रतिष्ठित जैनधर्मने करुणापूर्वक वृत्ति के प्रतीक और अवलम्बनरूप रात्रिभोजन त्याग और अनछमे १. सागारधर्मामृत २०१८ ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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