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________________ जैन शासन संयम बिन घड़िय म इक्क जाह भारतीय साहित्य का एक बोधपूर्ण कारक है जिसे कसके नामांकित विद्वान् टाल्स्टापने भी अपनाया है। एक पथिक किसी ऊँचे वृक्षकी शाखापर टंगा हुआ है, उस शाखाको पवल और कृष्ण वर्णनाले यो चहं काट रहे हैं । नीचे जड़को मस्त हाथी अपनी मुंड में फैमा उस्वाइन की तैयारी है । पथिककै नीचे एक अगाध जलसे पूर्ण तया मर्प-मगर आदि भयंकर जन्तुओं से व्याप्त जलाशय है । पथिक के मुखके समीप एक मधु-मविषयों का लत्ताई जिम्मे यदा-कदा एकात्र मधु-बिन्दु टपक वर पधिकको क्षणिक आनन्दका भान कराती है। इस मधुरररासे मुग्ध हो पथिक न तो यह सोचता है कि चूहोंके द्वारा शाखाके कटनेपर भेरा क्या हाल होगा? वह यह भी नहीं सोचता कि गिरनेपर उस जलायमें वह भयंकर जन्तुओंफा ग्राम बन जागा । उसके विषयान्ध हृदय में यह भी विचार पैदा नहीं होता, कि यदि हाथीन जारका झटका दे वृक्षको गिरा दिया तो वह किस तरह सुरक्षित रहेगा ? अनेक विपत्तियोंके होते हुए भी मधुकी एक विन्दुके रस-पान की लोलुपतावश वह सब बातोंको भूला हुआ है। कोई विमानबासी दिग्यात्मा उस पघिसके संकटपूर्ण भविष्यक कारण अनुकम्पायुक्त हो उसे समझाता है और अपने साथ निरापद स्थानको ले जाने की इच्ची तत्परता प्रदर्शित करता है । किन्तु, मह उनकी वालपर तनिक भी ध्यान नहीं देता और इतना ही कहता है कि मुझे कुछ थोड़ा-मा मधु-रस और ले लेने दो ! फिर मैं आपके साथ चलूगा । परन्तु उस विषयान्ध पथिकको वह अवसर ही नहीं मिल पाता कि वह विमानमें बैठ जाए; कारण इस बीच में यात्राके कटने से और वृक्ष के जाखड़नेसे उसका पतन हो जाता है । वह अवर्णनीय यातनाओं के साथ मौत का ग्रास बनता है। इस रूपकमें संसारो प्राणीका सजीव चित्र अंकित किया गया है । पथिक और कोई नहीं, संसारी जोय है, जिसको जीवन शाखाको शुक्ल और कृष्ण पक्ष रूपी चूहे, क्षण-क्षण में भीग कर रहे हैं। हाघो मृत्युका प्रतीक है और भयंकर जन्तु-पूर्ण सरोवर नरकादिका निदर्शक है । मधुबिन्दु सांसारिक क्षणिक सुखको मूचिका है। दिमानवासी पवित्रात्मा सत्पुरुषों का प्रतिनिधित्व करता है। उनके द्वारा पुनः पुनः कल्याण का मार्ग-विषय-लोलुपताका त्याग बताया जाता है । किन्तु वह विषयान्ध तनिक भी नहीं सुनता । वास्तव में जगत्का प्राणी मधु बिंदु सुल्य अत्यन्त अल्प मुखाभाससे अपने आत्माकी अनन्त लालसाको परितृप्त करना चाहता है, किंतु आशाको तृप्ति
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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