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________________ जैनशासन जो पोद्गलिक खेल है उसके आधारभूत प्रत्येक 'पुद्गल में स्पर्श, रस, गन्ध, वण पाया जाएगा। वैशेषिक दर्शन अग्निके तेजस्वी रूपके समान वर्णके तेअपूर्ण वर्णको देख उसमें अनुभूत अग्नि तत्त्वकी अद्भुत कल्पना करता है । यदि शक्तिकी अपेक्षा कहा जाय तो जलीय परमाणुओं तकमें अग्निरूप परिणत होने की भी सामर्थ्य है । इतमा ही क्यों, यह तो अनन्त प्रकारकापरलमान दिखा भवाते है । ईलो स्थिति में सुवर्णमें अनुभूस अग्नितरदसदृश विचित्र वैशेटिक मान्यताएँ सत्यको भूमिपर प्रतिष्ठा नहीं पाती। ___ सांख्यदर्शन जड़ प्रकृतिको अमूर्तिक मान मूतिमान् विश्वको सृष्टिको उसकी कृति स्वीकार करता है । पर धैज्ञानिकोंको इसे स्वीकार करनेमें कठिनता पड़ेगी कि अमूतिकमे मूतिककी निष्पत्ति किस न्याय से सम्भव होगी ? जैन दार्शनिक पुद्गलके परमाणु तकको मूर्तिमान् मानकर मूर्तिमान जगके उद्भवको बताते हैं । रेडियो, ग्रामोफोन, अणुबन आदि जगत्को चमत्कृत करनेवाली वैज्ञानिक शोध और कुछ नहीं पुदगलकी अनन्त शक्तियोंमेंसे कतिपय शक्तियोंका विकास मात्र है । वैज्ञानिक लोग एक स्थानके संवादको 'ईयर' नामके काल्पनिक माध्यमको स्वीकार कर सुदूर प्रदेशमे पहुंचाते हैं। इस विषयमें हजारों वर्ष पूर्व जैन वैज्ञानिक ऋषि यह बता गये हैं कि पुद्गल पुञ्ज (स्कन्ध) की एक सबसे बड़ी महास्कन्ध' नामकी सम्पूर्ण लोकब्यापी अवस्था है। वह अन्य भौतिक वस्तुओं के समान स्थल नहीं है । उस सूक्ष्म किन्तु जगत्म्यापी मान्ममके द्वारा सुदूर प्रदेशक संवाद आदि प्राप्त होते है । शम्द उस पुद्गल को हो परिणति है। आज भौतिक विज्ञान के पण्डितोंने शब्दका संग्रह करना, यम्बोंके द्वारा घटाने बढ़ाने आदि कार्योसे उसे मौतिक या पौद्गलिक माननेका मार्ग सरल कर दिया है, अन्यथा वैशेषिक दर्शनवालोंको यह समझाना अत्यन्त कठिन था कि शम्दको आकाशका गुण कहने वाली उनकी मान्यता संशोधनके योग्य है । शम्दको अनादि आकाशका गुण मान १. "भेदात् संघातात् भेदसंघाताम्यां च पूर्यन्ते गलन्ते वेति पूरणमलनात्मिका क्रियामन्तर्भाव्य पुद्गलशब्दोऽन्वर्थः".... -तत्त्वार्थराजवातिक पृ० १९० ५ ० ५ सू० ११ । २. "सुवर्ण तेजसम्, असति प्रतिबन्धकेऽत्यन्ताग्निसंयोगेऽपि अनुच्छिमाम द्रव स्वाधिकरणत्वात्"-तर्कसंग्रह पृ० ८। . ३. "तत्रान्त्य (स्यौल्यं) जगद्व्यापिनि महास्कम्र्थे ।" -पूज्यपादः सपिसिधि ५-२४
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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