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________________ ३२८ जेनशासन समृद्ध और मुखी भारतके भाग्य विधाता चंद्रगुप्त मौर्यके प्रधान सचिध चाणक्यके प्रभाव और शक्तिको कौन नहीं जानता, किन्तु कवि विशाखपतके शब्दोंमें उस महान व्यक्तिका निवास स्थान एक साधारणसी झोपड़ी थी 1 उसकी दीवाले जीणं थीं । अर्थके प्रति निस्पृह व्यघितयोंकी बुद्धिमें ही मानवताके विकासको मंगल-ज्योति दिखाई पड़ती है । मोहिनो भूति घाली आधुनिक सम्पताको कठोर शब्दोंमें आलोचना करते हुए विश्व संस्कृतिका भविष्य' निबन्ध रा० राधाकृष्णन् कहते है, "माधुनिक सम्यता आर्थिक बर्बरताकी मंजिलपर है। वह तो अधिकांश रूपमें संसार और अधिकार के पीछे दौड़ रही है । और आत्मा तथा उसकी पूर्णताको ओर ध्यान देनेको परवाह नहीं करती है। आजकी व्यस्तता वेगगति और नैतिक विकास इतना अवकाश ही नहीं देती कि मालिका स्तरित पिकासका काम कर सके।" वे यह भी लिखते है कि हम अपरेको सम्प इसलिए नहीं कह सकते कि, आधुनिक वैज्ञानिक वायुयान, रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन और हाइपराइटर काम में लाते हैं । बंदरको साइकिल चलाना, गिलासमें पानी पीना और तम्बाखूका पाइप पीना सिखा दिया जा सकता है, फिर वह रहेगा बंदर ही । शल्पिक निपुणताका नैतिक विकाससे बहुत कम सम्बन्ध है ।" अतः सच्चे कल्याणको दृष्टिमे आवश्यक है कि फाल्पनिक सम्पसाके घाल-शिखर पर समासोन जगत्का नपा उतारा जाय और यह तत्त्व समझाया जाय, कि सच्ची सम्यताका जागरण सदाचरण, अहिंसात्मक वृत्ति तथा संतोषपूर्ण जीवनसे होता है ।' 'सदय हृदय हुए' बिमा मनुष्य यथार्थमें नररूपधारी राक्षस ही बन जाता है । मानवताका पथ राक्ष सी जीवनके पूर्ण परिवर्तन करने में हैं। जहाँ तक पुण्याचरणका सम्बन्ध है, वहां तक यह कहना होगा कि शासक और शासितोंको संयम और सदाचार का समान रूपसे परिपालन करना आवश्यक है। शासकको अन्यायका पक्षपाती न होकर न्याय, सत्य, कणाका वादक होना चाहिए । पापियों की दिखनेवालो उन्नति सुरचाप सदृा अल्पकाल में ही विनष्ट होनेवाली है। डा० : इकपालका पश्चिमको भोग चतुर सभ्यता के प्रति कितना सुन्दर और सत्य कथन है१. "उपलशकलमेतभेदक गोमयानां वटुभिरुपहताना बहिषां स्तूपमैतत् । शरणमपि समिद्भिः मुथ्यमाणाभिरभि विनमितपटलान्तं दृश्यते जोर्णकुडयम् ।।"-मुद्राराक्षस अक ४, १५ । २. “विश्वभित्र" दीपावली अंक, २१-१७-४९, -१६
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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