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________________ विश्व-निर्माता दर्शनीय ही नहीं, सर्वदा वन्दनीय भी होता । विश्वके विधान में विधाताका हस्तक्षेप होता, तो एक कविके शनोंमें सुवर्ण में सुगन्ध, इन में फल, चन्दनमें पुष्प, विद्वान्में घनाठ्यता और भूपतिम दीर्घजीवनका अभाव न पाया आता। प्रभकी भक्ति में निमान पुरुष निर्मल आकाश, रमणीय इन्द्रधनुष, विशाल हिमाचल, अगाध और अपार सिन्धु, मुगन्धित तथा मनोरम पुष्प आदि आकर्षक भामग्रीको देखकर प्रभु की महिमाका गान करते हुए उन मुन्दर पदार्थों के निर्माणके लिए उस परम पिताके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलियां अर्पित करता है। किन्तु जब उमी भक्तकी दृष्टिमें इस जगतकी भीषण गन्दगी. बाह्य तथा आन्तरिक मा अनर नियतः गाही . मला पदार्थोसे परमात्माका न्यायप्राप्त सम्बन्ध स्वीकार करने में उसकी आत्माको अत्यधिक ठेस पहुँचती है । कौन ज्ञानवान् मांस-पीप-रुधिर-मल-मूत्र सदश बीभत्स घस्तुओंमें जीवोंकी उत्पत्ति करनेके कौशल प्रदर्शनका श्रेय सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान् परमानन्दमय परमात्माको प्रदान करनेका प्रयत्न करेगा! शान्त भावसे विचार करने पर यह शंका प्रत्येक त्रिन्तकफे अन्तःकरणमें उत्पन्न हुए बिना नहीं रहेगी कि उस परम प्रवीण पिताने अपनी श्रेष्ठ कृति रूप इस मानव-शरीरको 'पल-रुधिर-राध-मल थैली, कोकम वसादित मैली' बनानेका कष्ट क्यों चटाया ? यदि विचारक व्यक्ति परमाता के प्रयत्नके बिना अपवित्र तथा घणित पदार्थों का सद्भाव स्वीकार करने का साहस करता है, तो उसे अन्य पदार्थोंके विषय में भी इसी न्यायको प्रदर्शित करनेका सत्-हाहस दिखानेमें कौन-सी भाषा है। __ 'असहमत संगम' 'Confluence of opposites में इस काका समाधान किया है कि जगत रूप कार्य का कर्ता ईश्वर को क्यों नहीं माना जाय ? जगतका बनानेवाला ईश्वर है, तो ईश्वर का बनानेवाला अन्य होगा, उसका भी निर्माता १. 'गन्धः सुवर्ण फलमिनु कापडे, नाकारि पुष्प खस्नु चन्दनेषु । विद्वान धनी भूपतिदीर्घजीवी धातुः परा कोऽपि न युद्धिदोऽभूत् ।।" 2. "It is certainly not an universal truth that all things require a maker, What about the food and drink that are converted in the human and animal stomach into urine, faeces ard Alth? Is this the work of a God? | shall never believe that a God gets into the human and animal stomach and intestines and there employs himself in the manufacture, storage and disposal of fith, Now if this dirty work' is not done by a God or Goddess, but by the operation of different
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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