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________________ पुष्पानुबन्धी वाङ्मय २६९ अब तक इस में लिखे गये उपलब्ध बहुमूल्य ग्रन्थोंमें जैन रचनाओं को हो विपुलता है । यह भाषा श्रुतिमधुर मालूम होती है। इसके विषयमे यह कथन यथार्थ है- 'बेसिल अना सब मन मिट्ठा"। इस भाषा में पुष्पवन्त महाकविका महापुराण अत्यन्त कीर्तिमान् है । ये पुष्पदन्त पटुखंडागमके रचयिता पुष्पदन्त स्वामीले भिन्न है। ये नवमी सदीम हुए हैं, इनके पिता-माता पहिले शिवभक्त ब्राह्मण मे पश्चात् उन्होंने जनधर्म स्वीकार किया था । अपने माता-पिता के द्वारा अंनधर्मको अंगीकार करनेपर पुष्पदन्सने भी नशासनको स्वीकार किया होगा, ऐसा प्रतीत होता है। इनकी रचना शब्द, अर्थ रसप्रवाह आदिको दृष्टिरो अपूर्व सौंदर्य है | महाकविके महापुराण में १२२ संचिय हैं। श्लोकसंख्या लगभग २० हजार है। यदि राष्ट्र भाषामें इसका अनुवाद मूल सहित प्रकाशित किया जाय तो साहित्यरसिकों को महान् बानन्द प्राप्त होगा । कविके णायकुमारचरिउ और जसहर चरिउ भी प्रख्यात ग्रन्थ है । इधू कविकी दशलक्षण पूजा प्रसिद्ध हैं, वह बहुत रसपूर्ण है । कवि हरिवंशपुराण, रामपुराण, सिद्धचक्रचरित्र सम्मत्तगुणनिधान आदि लगभग चौबोस ग्रन्थ पुराण, सिद्धान्त, अध्यात्म तथा छन्द शास्त्र आदिके सोलहवीं सदी में बनाये थे । कनकामर सुनि रचित करकण्डु चरित्र भी एक सुन्दर रचना है । उसमें करकण्डुन रेशका आकर्षक चरित्र दिया है । यदि अपभ्रंश साहित्यका गहरा अध्ययन किया जाय तो भारतीय इतिहास और साहित्य के लिये बहुमूल्य और अपूर्व सामग्री प्राप्त हुए बिना न रहेगी। अभी पं० राहुल जीने स्वयंभू कक्षि रचित पउमचरिउका भनन किया, तो उन्हें यह प्रतिभास हुबा, कि रामचरितमानस के निर्माता विख्यात हिन्दीकवि तुलसीदासजीकी रचना पर पउभचरित्रका गहरा प्रभाव है । यह बात श्री राहुलजीने सन् १९४५ को सरस्वती में प्रकट की है। इसी प्रकार न जाने कितनी अंधकारमें पड़ी हुई बातें प्रकाश में आयेंगी और कितनी भ्रान्त धारणाओंका परिमार्जन होगा ? हिन्दी भाषा में भी बनारसीदास, भैया भगवतीदास, भूधरदास यानतराय, दौलतराम, जयचन्द, टोडरमल, सदासुख और भागचन्द आदि विद्वानोंने बहुमूल्य रचनाएँ को हैं, जिनसे साधकको विशेष प्रकाश और स्फूर्ति प्राप्त हुए बिना न रहेंगी। हजारों अपूर्व अपरिचित ग्रंथोंके विषय में परिज्ञान कराना एक छोटेसे लेखके लिये संभव है। अतः हमने संक्षेप में उस विशाल जैनवाङ्मयरूप समुद्रकी इस १. इनके परिचय के लिए इसी संस्थासे प्रकाशित 'हिन्दी जैन साहित्यका संक्षिप्त इतिहास' पुस्तक देखना चाहिए ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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