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________________ २०८ जेनपासन __श्रुतपंचमी-श्रुत शब्द 'शास्त्र' का बाचक है । ज्येष्ठ सुदी पंचमी का मंगलमय दिवस सरमनदीती जमानताका सुन्दर साल है। सौराष्ट्र देशकी गिरिनार पर्वतकी चंद्रगुहामे प्रातःस्मरणीय आचार्य परसेनने भगवान महावीर के कर्मसाहित्य सम्बन्धी परम्परासे प्राप्त प्रवचनको लोकहितार्थ भूतबलि और पुष्पदन्त मामक दो मुनोन्द्रोंको आषाढ़ शुक्ला एकादशी के प्रभातमें पूर्णतया पाया था । इसके अनन्तर गुरुदेवका स्वर्गवास हो गया और शिष्ययुगलने कर्म साहित्यपर पखंडागम सूत्र नामकी महान रचना आरंभ की। कुछ काल पश्चात् पुष्पदम्त प्राचार्य सहयोग न दे सके, अतः पोषांश भूतबलि स्वामीने लिखा । उस षट्वंडागभ शास्त्रको साधर्मी समुदायने ज्येष्ठ सुदी पंचमीको बड़े वैभव तथा उत्साहपूर्वक पूजा कर सरस्वतीके प्रति अपनी उस्कृष्ट श्रद्धा व्यस्त को । तबसे श्रुतपंचभी नामका पर्व प्रख्यात हो गया ।' श्रुतपंचमीमें ग्रन्थोंको उच्च स्थानपर विराजमान करके सम्यक्जानकी पूजा की जाती है। साधक यह भी मिसन करता है कि यथार्थ ज्ञान आत्माका स्वभाव है। बाह्य प्रन्थ उस ज्ञानज्योतिको प्रदीप्त करने में सहायक होते है, अतः कृतज्ञतावश उस साधनाका समादर करना साधक अपना कर्तव्य समझता है । अभी हमने कुछ मंगलमय प्रमुस्त्र पर्वोका वर्णन किया है। ये पर्व सादि हैं, कारण उनकी उद्भति विशेष घटनाओंके आधारपर हुई । अब हम थोड़ेसे ऐसे पर्वोपर प्रकाश डालना उचित समझते हैं, गो अनादि पर्व के नामसे प्रसिद्ध है। अनादि अनन्त विश्वपर दृष्टिपात करें, तो ऐसा स्थान और दिवस इस मनुष्यलोकमें नहीं मिलेगा, जर कि किसी महान् साधकने अपनी सफल साधनाके प्रसादसे निर्माणका पदन प्राप्त किया हो, फिर भी लोक-व्यवहारनिमित्त प्रमुख पुरुषों से सम्बन्धित या मुख्य संयमकी ओर आत्माको आकर्षित करनेवाले मंगलकालको विशेष मान्यता प्रदाम की जाती है । १. 'ज्येष्ठसितपक्षपञ्चम्यां चातुर्वर्ण्य संघप्समवेतः। तसुस्तकोपकरणंबंधात् क्रियापूर्वक पूजाम् ।। १४३ ।। श्रुतपञ्चमोति तेन प्रख्याति तिपिरियं परामाप । अद्यापि येन तस्यां श्रुतपूजां कुर्वते जैनाः ।। १४४ ।।" -इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार । २. "तस्थ कालमंगलं माम अम्हि काले केवलणाणादिपज्जएहि परिणदो कालो पावमलगालणसादो मंगलं। तस्योदाहरणम्, परिनिष्क्रमणकेवलज्ञानोत्पत्ति-परिनिर्वाण-दिवसादयः । जिनमहिमसम्बद्धकालोऽपि मंगलं यथा नन्दीपवरदिवसादिः। -धवलाटीका भाग १.१० २९ ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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