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________________ १८८ जैनशासन अगणित मुनि जहं तँ गए, लोक शिखर के तीर | तिनके पद पंकज नमों, नासैं भव की पीर 11" 1 मैसूर राज्यके हासन जिला में श्रमणबेलगोला निर्वाणभूमि न होते हुए भी, भगवान् ग्राम्मटेश्वर बाहुबलोकी ५७ फीट ऊंची भव्य तथा विशाल मूर्तिके कारण अतिशय प्रभावक तथा आकर्षक सीर्थस्थल माना जाता है । वह स्थान ह्रासन स्टेशन से ३२ मोल, मैसूरसे ६० मील तथा बेंगलोर से ९० मीलकी दूरीपर अवस्थित है। सर मिर्जा इस्माइलने मैमूर के दीवानको हैसियत से दिए गए अपने एक भाषण में कहा था- 'सम्पूर्ण मैसूर राज्य में श्रमणबेलगोल सुद्दा अन्य स्थान नहीं हैं, जहाँ सुन्दरता तथा भव्यताका मनोज्ञ समन्वय पाया जाता हो ' वह जैन तीर्थ होनके साथ विश्वके कलाकारों तथा कलाप्रेमियोंके लिए दर्शनीय तथा अभिनंदनीय स्थल हैं । उस स्थान में श्रमणशिरोमणि बाहुबली स्वामीकी लोकोत्तर मूर्ति विद्यमान है तथा वहाँका बेलगोल-सरोवर भी महत्त्वपूर्ण है । इस कारण श्रमण तथा बेलगोल समन्धित उस भूमिको श्रमणबेलगोला कहते हैं । जिस पर्वतपर मूर्ति विराजमान है वह भूतल ४७० फीट ऊँचाई पर है । समुद्रतल से ३३४५ फोट ऊंचा है। पर्वतका व्यास २ फर्लाङ्गके लगभग है। पहाड़पर चढ़ने के लिए लगभग ५०० सीड़ियाँ पहाड़ ही उत्कीर्ण है । प्रवेशद्वार बड़ा आकर्षक है। अन्य पर्वतोंके समान दूरसे रमणीयता और समीप भीषणतारूप विषमता यहाँ नहीं है । वह चिकना, ढालसमन्वित बढ़िया पाषाणयुक्स है। दर्शक जब भगवान् गोम्मटेश्वरकी विशाल मनोज्ञ मूर्तिकं समक्ष पहुँच दिगम्बर गांव जिनमुद्राका दर्शन करता है तब वह चकित हो सोचता है'अहा ! मैं दुःखदावानलसे बचकर किस नहान् शान्तिस्थलमे आ गया हूँ वहाँ आत्मा प्रभुकी मुद्रासे बिना वाणीका अवलंबन ले मौनोपदेश ग्रहण करता है । हजारों वर्ग प्राचीन मूर्ति दर्शकको प्रायः नवीन निर्मित मूर्ति-सी प्रतीत होती है । सभी ऋतुएँ आकर भगवान्का हृदयसे स्वागत करती हैं । कारण मूर्तिके ऊपर किसी भी प्रकारको छाया नहीं है, जो सूर्य, चन्द्र और वर्षा आदि ऋतुओंको प्राकृतिक मुद्राधारी प्रभुके समादर अथवा दर्शनमें अन्तराय उपस्थित कर सके । बारहवीं सदीके बोप्पण पण्डित नामक कन्नड़ विद्वान्ने नक्षत्रमालिका नामको पचरचना में भगवान्‌का सुन्दर वर्णन करते हुए एक पद्य में बड़ी मार्मिक बात कही है- 'अत्यन्त उन्नत आकृतिवाली वस्तुमें सौन्दर्यका दर्शन नहीं होता, जो अतिशय सुन्दर वस्तु होती हैं यह अतीव उन्नत आकारवाली नहीं होती । किन्तु, गोम्मटदवरको मूर्ति में यह लोकोत्तरता है कि वह अत्यन्त उन्नत होनेपर भी अनुपम सौन्दर्यस विभूषित है। मैसूर राज्य के पुरातत्व विभागके डायरेक्टर
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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