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________________ प्रबुद्ध-साधक ९५ जीने उनसे कहा था कि सनौतिक वस्तु जाता है। उस समय यस्त्र भी छूट जाता है ।" बौद्ध साहित्यसे भी दिगम्बर श्रमणका सद्भाव ज्ञात होता है । "विसाख वस्युषम्मपदत्य कामें लिखा है कि एक श्रेष्ठि के भवन में ५०० दिगम्बर जैन साधुओंने आहार किया था। दीर्घनिकाय से विदित होता है कि कौशल नरेश प्रसेनजित्ने निर्ग्रन्थों' को नमस्कार किया था । महावणसे जात होता है कि वैशाली में दिगम्बर जैन श्रमणका विहार होता या 'महापरिणाण सुतं धम्म पदयका' में भी निन्योंका उल्लेख पाया जाता है । मुसलिम समाज में भी दिगम्बरत्वका सम्मान रहा है । आजसे ३०० वर्ष पूर्व मुसलिम संत सरमद शाहजहाँके राज्य में दिगम्बर के रूपमें राजधानी देहलीमें विचरण करता था। दिल्ली में लालकिले के सभी में संत सरमदका मजार है, जहाँ सदा की भीड़ लगी रहती है। उसके ये शब्द बड़े मार्मिक हैं, "जिसमें दोष देखता है उसे वस्त्र पहिना देता है, जो दोषरहित है। उन्हें नंगा ही रहने देखा है" 19 आचार्य सोमदेव यशस्तिलचम्पू में शकुनशास्त्र की दृष्टिसे दिगम्बर मुनिके विहारको राष्ट्र के लिए मंगलमय चताया है पश्चिमी राजहंसाश्च निर्ग्रन्धाश्च तपोधनाः । यं देशमुपसर्पन्ति सुभिक्षं तत्र निर्दिशेत् ॥" आज के भौतिकवादी वातावरण में किन्हीं किन्हीं व्यक्तियोंको शिष्टाचारके नामपर दिगम्बर मुनीन्द्रोंका नगरादि गमनागमन अप्रिय लगता है । किन्तु मपि वर्णन प्रकाशमें उन योगियोंकी महताको सोचने और समझनेका प्रयत्न करें तो उनका हृदय उन मुनीन्द्रोंकी मुद्रामत्ताये प्रभावित हुए विना न रहेगा । सन् १९४४ ई० के दिसम्बर में नागपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सर १, "Ramkrishna said I lost attention to every thing (mundare). My cloth dropped." "Reminiscences of Ramkrishna," Vol. I, p, 310 २. Historical Gleamings, 93.95, 3. (See also Sacred Books of the East Vol XXIII, 223 and XVIL 116), vide the Digambara Saints of India 75. ४. विश्ववाणी मासिक ४ ० २५१ वर्ष ८ । ५. "पोशाद लिवास हरकरा ऐवे दीक्ष । ये ऐवारा लिबासे उरियानी दाद ॥ "
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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