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________________ 05 से बन में गए । वे राजपुत्र अवश्य ही सुखी है, जिनका पिता राम का भार संभाले हुए है। जिसने प्रथमाश्रम (ब्रह्मचर्याश्रम) को स्वीकार किया है, जिसकी बुद्धि परब्रह्म (परमात्मा या ब्रह्मचर्य) में आसक्त है,जो गुरुकुल की उपासना करता है तथा समस्त विद्याओं का जिसने अध्ययन किया है, ऐसा क्षत्रिय पुत्र कुमारावस्था को अलंकृत करता हुआ ब्रह्मा है" इस प्रकार नीतिवाक्यामृत के अनुसार राजपुत्र के निम्नलिखित गुण अथवा योग्यतायें मानी जा सकती हैं : 1. विधाओं में प्रवीणता । 2. विनय । 3. ब्रह्मचर्यपालन। 4. परमात्मा का स्मरण । 5. आकार । 6. प्रभाव । 7. पराक्रम। राजकुमारों को दी जाने वाली शिक्षा - राज्याभिषेक के समय, शिक्षा प्राप्ति के बाद अधवा अन्य विशेष अवसर पर माता-पिता अथवा गरुजन राजपुत्र को शिक्षा देते थे। जो गुरुजन स्वयं गुणी तथा विद्वान होते हैं, उनका पुत्र को उसके ही कल्याण के लिए अपनी बहुजता के अनुकूल उपदेश देना स्वाभाविक है | राजा वगंगकुमार सुगाव का राज्याभिषेक करने से पहिले शिक्षा देते हैं हे सुगात्र ! अपने पूर्व पुरुष, गुरुजन, विद्वान, उदारविचारशील, दयामय कार्यों में लीन तथा आर्यकुल में उत्पन्न समस्त पुरुषों का विश्वास तथा आदर करना । प्रत्येक अवस्था में इनसे मधुरवचन कहना । इनके सिवा जो माननीय है, उनको सदा सम्मान देना शत्रुओं पर नीतिपूर्वक विजय प्राप्त करना, दुष्ट तथा अशिष्ट लोगों को दण्ड देना । अपराध करने के पश्चात् जो तुम्हारीशरण में आ जोग, उनकी उसी प्रकार रक्षा करना, जिस प्रकार मनुष्य अपने सगे पुत्रों की करता है | जो लँगड़े लूले हैं, जिनकी आँखें फूट गई हैं. मूक हैं, बहिरे हैं. अनाथस्त्रियाँ है, जिनके शरीर जीर्ण शीर्ण हो गए हैं, सम्पत्ति जिनसे विमुख है, जो जीविकाहीन हैं, जिनके अभिभावक नहीं है, किसी कार्य को करते-करते जो श्रान्त हो गए हैं तथा जो सदा रोगी रहते हैं, इनका बिना किसी भेदभाव के भरण पोषण करना। जो पुरुष दूसरों के द्वारा तिरस्कृत हुए है अथवा अचानक विपत्ति में पड़ गए हैं, उनका भली भांति पालन करना । धर्ममार्ग का अनुसरण करते हुए सम्पत्ति कमाना, अर्थ की विराधना न करते हुए कामभोग करना । उतने ही धर्म का पालन करना जो तुम्हारे काम सेवन में विरोध न पैदा करता हो । तीनों पुरुषार्थों का अनुपात के साथ सेवन करने का यह शाश्वत, लौकिक नियम है । जब कभी दान दो तो इसी भावना से देना कि त्याग करना तुम्हारा कर्तव्य है । ऐसा करने से गृहीता के प्रति तुम्हारे मन में सम्मान की भावना जाग्रत रहेगी । जबजब तुम्हारे सेवक अपराध करें तो उनके अपराधों की उपेक्षा कर उनको स्वामी मानकर क्षमा कर देना । जो (अकारण ही) वैर करते हैं, अत्यन्त दोषयुक्त हैं तथा प्रमादी हैं, नैतिकता के पथ से प्रष्ट हो जाते हैं, जिन पुरुषों का स्वभाव अत्यन्त चंचल होता है तथा जो व्यसनों में उलझ जाते हैं ऐसे पुरुष को लक्ष्मी निश्चित रूप से छोड़ देती है. ऐसा लोक में कहा जाता है । इसके विपरीत जो पुरुषार्थी हैं, दीनता को पास तक नहीं फटकने देते हैं, सदा ही किसी न किसी कार्य में जुटे रहते हैं, शास्त्रज्ञान में जो पारंगत हैं, शान्ति और दया जिनका स्वभाव बन गया है तथा जो सत्य, शौच, दम तथा उत्साह से युक्त हैं ऐसे लोगों के पास सम्पत्तियाँ दौड़ी आती है। उपर्युक्त शिक्षा से राजकुमार के निम्नलिखित गुण निर्धारित होते हैं - 1. पूज्य पुरुषों से मथुर भाषण करना तथा उनकी विनय करना । 2. शत्रुओं पर नीतिपूर्वक विजय प्राप्त करना । 3. दुष्टय को दण्ड देना तथा शरणागत की रक्षा करना |
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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