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________________ देवताध्यक्ष 105, सन्निधाता 105, प्रदेष्टा 105, नायक 105, पौरण्यावहारिक 105. कामान्तिक 105, मन्त्रिपरिषदाध्यक्ष 106, दण्डपाल 106, दुर्गपाल 106, अन्तपाल 106, आटविक 106, श्रेणियों का महत्व १८ मभापति 10. ,गज श्रेष्ती 106 पीतामर्द, १९६.,अन्त र के प्रशिक 106, नैभिस्तिक 107, भाण्डागरिक 307, पौर 107, महत्तर 107, गृहपति 107. ग्राम मुख्य 107, लेखप्रवाह 107, लेखक 107, मोजक 107, गोष्टमहत्तर 107. पुररक्षक 107. पालक 107, धर्मस्थ 107, आयुधपालन 107, याममहत्तर 107, अधिकारियों को नियुक्ति 107, अधिकारियों का राजा के प्रति व्यवहार 108, राजा का अधिकारियों के प्रति कत्तंव्य 108 सप्तम अध्याय . दीप एवं दुर्ग - कोप की उपयोगिता 113, कोष का लक्षण 114, कोषाधिकारो 114, कोषविहीन राजा की स्थिति 114,आय और व्यय 114, राजकीय आय के साघम् कर 115, अधिकारियों से प्राप्त धन 115, व्यापारियों से प्राप्त धन 115, अन्य देश के राजाओं से प्राप्त धन 115, कोषवृद्धि के उपाय 115, संचय करने योग्य पदार्थ 116, कोषवृद्धि के कारण 116, कोष के गुण 116, अर्थ और उसकी महत्ता 116, अर्थलाभ के तीन भेद 117, राजनाला धन 117, दुर्ग की परिभाषा 117, दुर्ग का महत्त्व 117, दुर्गरचना 117, दुर्ग के भेद 118, स्वाभाविक दुर्ग 118, आहार्य दुर्ग 11B, दुर्गजीतने के उपाय 118, अधिगमन 118, उपजाप 118, विरानुबन्ध 118, अवस्कन्द 118, तीक्ष्णपुरुष प्रयोग 118, दुर्ग न होने से हानि 118, दुर्ग की सुरक्षा के उपया 178 अष्टम अभाव बल अथवा सेना - सेना की परिभाषा 121, सेना के भेद 121, हस्तिसेना 121, अश्वसेना 121, रथ सेना 122, पदातिसेना 122, सप्ताङ्ग सेना 122 मोक्षबल 123, मृतकबल 123, श्रेणी बल 124, आरण्य बल 124, मित्रबल 124, दुर्गबल 124, सेना की गणना 125, पत्ति 125, सेना 125, सेनामुख 125, गुत्म 125, वाहिणी 125, पृतना 125, चमू 125, अनीकिनी 125, अतौहिणो 125, सैनिक प्रयाण 125, सैन्य शिविर 126, युद्धकालीन स्थिति 127, सेना के विविध कर्मचारी 128, युद्ध 128, सैन्य शक्ति का उपयोग 128, युद्धकालीन राजकर्तव्य 129, युद्धरीति 129, व्यूह रचना 130, चक्रव्यूह 130, गरूड़ व्यूह 130, केतुरचना 130, तृष्णोयुद्ध 130, श्रेष्ठ सेना 131 सैनिकों का कर्तव्य 131, सेना के राज विरूद्ध होने के कारण 131, युद्ध में जीत न होने के कारण 131, पराजय के बाद की स्थिति 131, शत्रुविजय 132, देश 135, काल 135, यात्राकाल 135, उचित देश 13 नवम अध्याय न्याय एवं प्रशासन व्यवस्था - न्याय की आवश्यकता 140, न्यायाधीश 140, सभ्य 140, न्यायिक उत्तरदायित्व 140. सभायें 141, विजयदेव की सभा 141, सुधमां सभा और उसके समान अन्य सभायें 141, शक्र समा 141, बलदेव सभा 141, रामा बसु की सभा 141, राज सभा 142, वादविवाद
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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