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________________ 1 1. कुलकर 3. अर्द्धचक्री राजाओं को दिनचर्या आदिपुराण के 41 वे पर्व में सम्राट भरत की दिनचर्या का वर्णन किया गया है, इस आधार पर तत्कालीन राजाओं के दैनिक जीवन की क्रियाओं के विषय में बहुत कुछ जाना जा सकता है। राजा सबेरै उठकर धर्मात्मा पुरुषों के साथ धर्म का अनुचिन्तन करते थे, पश्चात् मन्त्रियों के साथ अर्थ तथा कामरूप सम्पदाओं का विचार करते थे। वे शैय्या से उठते ही देव और गुरुओं की पूजा करते थे और मंगल वेष धारणकर धर्मासन पर आरुढ़ होते थे। वहाँ राजा के दार और विचारकर ने अधिकारियों को अपने अपने काम पर लगाते थे। इसके बाद राजसभा के बीच राजसिंहासन पर विराजमान होकर सेवा का अवसर चाहने वाले राजाओं का सम्मान करते थे। वे कितने ही राजाओं को दर्शन से, कितनों को मुस्कान से कितनों को वार्तालाप से, कितनों को सम्मान से और कितनों को दान आदि से सन्तुष्ट करते थे। वहां वे पर भेट लेकर आए हुए बड़े बड़े पुरुषों तथा दूतों को सम्मानित कर और उनका कार्य पूराकर उन्हें विदा करते थे । नृत्य आदि दिखाने के लिए आए हुए कलाओं के जानकार पुरुषों को बड़े बड़े पारितोषिक देकर से सन्तुष्ट करते थे । अनन्तर सभा विसंजन करते और राजसिंहासन से उठकर कोमल क्रीड़ाओं के साथ इच्छानुसार बिहार करते थे। दोपहर का समय निकट आ जाने पर स्नान, भोजन आदि कर अंलकार धारण करते थे। उस समय परिवार की स्त्रियाँ उन पर चंवर ढोलना. पान देना और पैर दबाना आदि के द्वारा उनकी सेवा करतो थी। भोजन के बाद बैठने योग्य भवन (भुक्तोत्तरस्थान) में कुछ राजाओं के साथ बैठकर चतुर (विदग्ध) लोगों की मण्डली के साथ विद्या की चर्चा करते थे। वहां जवानी के मद से जिन्हें उद्दण्डता प्राप्त हो रही थी ऐसी वारविलासिनी (वेश्यायें) और प्रियरानियाँ उन्हें चारों तरफ से घेर लेती थी उनके साथ आभाषण, परस्पर की बातचीत और हास्यपूर्ण कथा आदि भोगों के साधनों से ने कुछ देर तक सुख से बैठते थे। इसके बाद जब दिन का चौथाई भाग शेष रहता तब मणिजटित जमीन पर टहलते हुए वे चारों और राजमहल की उत्तम शोभा देखते थे। वे कभी कभी क्रोडा सचिव ( क्रोड़ा में महायता देने वाले लोगों) के कन्धों पर हाथ रखकर इधर उधर घूमते थे। रात में योग्य कार्य करते हुए मुखपूर्वक रात्रि बिताते थे । राजा के अन्य विशेष कार्यों में मन्त्रियों केसाथ महाल करना, षाडगुण्य का अभ्यास करना, आवीक्षिकी, त्रयी, वार्ता और दण्डनीति का व्याख्यान, निधियों और रत्नों का निरीक्षण, धर्मशास्त्र के विवाद का निराकरण, अर्थशास्त्र और कामशास्त्र में चातुर्य, हस्तिन्त्र, अश्वतन्त्र, आयुर्वेद, व्याकरण, छन्दशास्त्र, निमित्तशास्त्र, शकुनशास्त्र तन्त्र, मन्त्र, शकुन, ज्योतिष कलाशास्त्र, धर्मशास्त्र आदि में निपुणता प्राप्त करना आदि प्रमुख थे से राजाओं के गेंद जैन साहित्य में राजाओं के निम्नलिखित भेद प्राप्त होते हैं. 2. चक्रवर्ती 4. विद्याधर ( खचर"" खेचर" नभश्चर ं ) 149 5. महामुकुटबद्ध 6. मुकुटबद्ध" (मौलिबद्ध ६) 7. महामाण्डलिक 176 - यह चार हजार छोटे-छोटे राजाओं का अधिपति होता था " । 8. मण्डलधिप 10. भूपाल 17 (नृप'", पार्थिव 123 क्षितीश28, भृगोचर २१ ) - " נין 1 माण्डलिक "" 9 अधिराज क्षोणीनाथ 124 भूप 125, महीभृत", उर्वीपति, ·
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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