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________________ 31 बड़ा गाँव होता था उसे संग्रह (मण्डी) कहते थे" | जिस राज्य के स्वामी एक से अधिक होते थे बहदौराज्य" कहलाता था । ऐसे राज्य में स्थिरता नहीं रहती थी इसीलिए कहा गया है कि राज्य और कुलवती स्त्रां इनका उपभोग एक पुरुष कर सकता है। जो पुरुष इन दोनों को अन्य पुरुषों के साथ उपभोग करता है, वह नर हो पशु है । चन्द्रप्रभचरित के अनुसार उत्तम देशों के जो लक्षण प्राप्त होते हैं उनमें उपजाऊ और रमणीय जमीन" स्वच्छ सरोवर", दीर्घिकायें, नदियों, खनिक क्षेत्र, उत्कृष्ट धान्य सम्पदा* वृक्षादि वनस्पति" इतियों की बाधा न होना, प्रमुदित" सुचरित्र” नित्र्यंनी प्रजा प्रजापालक राजा", उत्तम जलवायु, उत्तम पथ तथा अभिलाषित वस्तुओं को प्राप्ति होना प्रमुख हि। राज्य की उत्पत्ति पद्मचरित के अध्ययन से राज्य की उत्पत्ति के जिस सिद्धान्त को सर्वाधिक बल मिलता है, वह है सामाजिक समझौता सिद्धान्त आधुनिक युग में इस सिद्धान्त को सबसे अधिक बस देने वाले हाब्स, रूसी और लॉक हैं। इनमें भी पदमचरित का राज्य की उत्पत्ति सम्बन्धी संकेत आधुनिक युग के रुसी और लॉक के सिद्धान्त से बहुत कुछ मिलता जुलता है । इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य दैवीय न होकर एक मानवीय संस्था है, जिसका निर्माण प्राकृतिक अवस्था में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा पारस्परिक समझौते के आधार पर किया गया है। इस सिद्धान्त के सभी प्रतिपादक अत्यन्त प्राचीन काल में एक ऐसी प्राकृतिक अवस्था के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, जिसके अन्तर्गत जीवन को व्यवस्थित रखने के लिए राज्य या राज्य जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी । सिद्धान्त के विभिन्न प्रतिपादकों में इस प्राकृतिक अवस्था के सम्बन्ध में मतभेद हैं। कुछ इसे पूर्व सामाजिक और कुछ इसे पूर्व राजनैतिक अवस्था मानते हैं। इस प्राकृतिक अवस्था के अन्तर्गत व्यक्ति अपनी इच्छानुसार प्राकृतिक नियमों को आधार मानकर अपना जीवन व्यतीत करते कुछ ने प्राकृतिक अवस्था को अत्यन्त कष्टप्रद और असहनीय माना है तो कुछ ने इस बात का प्रतिपादन किया है कि प्राकृतिक अवस्था में मानवजीवन सामान्यतः आनन्दपूर्ण था। पद्मचरित में इसी दूसरी अवस्था को स्वीकार किया गया है । प्राकृतिक अवस्था के स्वरूप के सम्बन्ध में मतभेद होते हुए भी यह सभी मानते हैं कि किसी न किसी कारण से मनुष्य प्राकृतिक अवस्था को त्यागने को विवश हुए और उन्होंने समझौते द्वारा राजनैतिक समाज की स्थापना की । पद्मचरित के अनुसार इस अवस्था को त्यागने का कारण समयानुसार साधनों को कमी तथा प्रकृति में परिवर्तन होने से उत्पन्न हुआ भय था" । इन संकटों को दूर करने के लिए समय-समय पर विशेष व्यक्तियों का जन्म हुआ। इन व्यक्तियों को कुलकर कहा गया । राज्य को उत्पत्ति का मूल इन कुलकरों और इनके कार्यों को ही कहा जा सकता है। T आदिपुराण के अनुसार पहले भोगभूमि थीं । दुष्ट पुरुषों का निग्रह करना अर्थात् उन्हें दण्ड देना और सज्जनों का पालन करना, यह क्रम भोग भूमि में नहीं था; क्योंकि उस समय पुरुष निरपराध होते थे" । भोगभूमि के बाद कर्मभूमि का प्रारम्भ हुआ। कर्मभूमि में दण्ड देने वाले राजा का अभाव होने पर प्रजा मात्स्यन्याय का आश्रय करने लगेगी अर्थात् बलवान निर्बल को निगल जायेगा । ये लोग दण्ड के भय से कुमार्ग की ओर नहीं दौड़ेगे इसलिए दण्ड देने वाले राजा का होना उचित है और ऐसा राजा ही पृथ्वी जीत सकता है । जिस प्रकार दूध देने वाली गाय से उसे किसी प्रकार की पीड़ा पहुँचाये बिना दूध दुहा जाता है और ऐसा करने से वह गाय सुखी रहती है तथा दुरुने श्रा की भी आजीविका चलती रहती है, उसी प्रकार राजा की भी प्रजा से धन वसूल करना चाहिए । सह धन पीड़ा देने वाले करों से वसूल किया जा सकता है। ऐसा करने से प्रजा भी दुःखी नहीं -
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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