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आचार्य सोमदेव ने राष्ट्र की परिभाषा इस प्रकार दी है - 'पशु धान्य हिरण्य सम्पदा राजते शोभते इति राष्ट्रम' अर्थात् जहाँ पशु, धान्य और हिरण्य सम्पदा सुशोभित होती है, उसे राष्ट्र कहते हैं। आज धान्य और हिरण्य सम्पदा की ओर तो विशेष ध्यान दिया जा रहा है, किन्तु पशु सम्पदा की घोर उपेक्षा हो रही है। पशुओं को अमानुषिक यन्त्रणा देकर आधुनिक शस्त्रोपकरणों से लैस वधशालाओं में मारा जा रहा है । ऐसी स्थिति में पशुधन को सुरक्षा के बिना राष्ट्रको पालामा कैसे की जा सकती है? हमें प्राचीन आदर्शों से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए । पर्याप्त गुप्तचर व्यवस्था के अभाव में बड़े से बड़े व्यक्ति का भी जीवन आज खतरे से खाली नहीं है । सीमावर्ती राज्यों में विदेशी एजेन्ट सक्रिय हैं, जो आतङ्कवादी गतिविधियाँ फैला रहे हैं, इस प्रकार देश के सामने अनेक समस्यायें हैं, जिनका निराकरण प्राचीन भारतीय राजमार्गोपदेष्टाओं के नीतिपरक उपदेशों से ही हो सकता है, जिसके लिए सम्यक् अध्ययन अपेक्षित है।
डॉ.विजयलक्ष्मी जैन ने जैन राजनैतिक चिन्तन धारा को सर्वसामान्य के सम्मुख उद्घाटित कर महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। राजनैतिक चिंतनधारा को धर्मनीति से जोड़ने वाले दार्शनिक संत परम पूज्य श्री सुधासागरजी महाराज की पावन प्रेरणा एवं मंगलकारी आशीर्वाद से यह कृति संपादित एवं प्रकाशित होकर पाठकों के हाथ में पहुंच रही है, इनके पावन चरणों में कोटि - कोटि नमोस्तु करता हूँ, तथा इस ग्रन्थ का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन समिति,अजमेर के सहयोग से आचार्य जानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र ब्यावर से किया जा रहा है, अत: केन्द्र के प्रति भी साधुवाद ज्ञापित करता हूँ । आशा है, इस प्रकार के अध्ययन को और भी अधिक गति प्राप्त होगी।
-डॉ. रमेशचन्द जैन