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________________ 168 (20) बिना क्रम के प्रत्येक कार्य में आगे आना । (21) मुर्खता । (22) दुराचार। (23) स्वतन्त्र रहना (मन्त्री आदि से सलाह न लेना) (24) आलस्य । (25) अपनी शक्ति को न जानना । (26) अधार्मिकता। (27) बलात्कारपूर्वक प्रजा से धन ग्रहण ! (28) यथापराध दण्ड न देना | (29) क्षुद् अधिकारी रखना | (30) ब्रह्मघात (शस्त्रहीन शत्रु को हत्या करना) । राजा के सहायक - राजा के सहायकों में मन्त्रियों का विशिष्ट स्थान है । जिस प्रकार मन्त्रशाक्त के प्रभाव से बड़े बड़े स सामथ्यहान होकर विकाररहित हो जाते हैं। उसी प्रकार मन्त्रशक्ति के प्रभाव से बड़े बड़े शत्रु सामर्थ्यहीन होकर विकाररहित हो जाते हैं" । राजा मन्त्रियों द्वारा चर्चा किए जाने पर शत्रुओं का सब प्रकार आना जाना आदि जान लेता है और उसके द्वारा उसका आत्मयल सन्निहित रहता है. इस प्रकार वह जगत को जीतने में समर्थ होता है।" | राजा को मन्त्रियों की परीक्षा घर्मोपत्रा, अर्थोपधा, कामोपधा और भोपधा इन चार उपधाओं तथा जाति आदि गुणों से करना चाहिए तथा निम्नलिखित कार्य मन्त्री की सलाह से करना चाहिए। (1) बिना जाने या प्राप्त किए हुए शत्रु सैन्य वगैरह का जानना या प्राप्त करना। (2) जाने हुए कार्य का निश्चय करना । (3) निश्चित कार्य को दृढ़ करना । (4) किसी कार्य में सन्देह होने पर उसका निवारण करना । (5) एकोदेश प्राप्त हुए भूमि आदि पदार्थों का प्राप्त करना अथवा एकोदेश जाने हुए कार्य के शेष भाग को जान लेना। अमात्य की परिभाषा देते हुए कहा गया है - जो राजा द्वारा दिया हुआ दान- सम्मान प्राप्त कर अपने कत्तळपालन में उत्साह व आलस्य करने में राजा के साथ सुखी दुःखी होते हैं, उन्हें अमात्य कहते हैं | जिस प्रकार (रथ आदि का) एक पहिया नहीं चल सकता है, उसी प्रकार मन्त्री आदि की सहायता के बिना राज्यशासन नहीं चल सकता है | जिस प्रकार अनि ईंधन युक्त होने पर भी हवा के बिना प्रज्वलित नहीं हो सकती उसी प्रकार मन्त्री के बिना बलिष्ठ व सुयोग्य राजा भी राज्य शासन करने में समर्थ नहीं हो सकता है । मन्त्री के अतिरिक्त अन्य उच्च पदाधिकारियों में पुरोहित, सेनापति, युवराज, दौवारिक, अन्तर्वशिक, प्रशास्ता, समाहर्ता सन्निधाता, प्रदेष्टा, नायक,पौरठ्यावहारिक, काान्तिक, मन्त्रिपरिषदाध्यक्ष, दण्डपाल, दुर्गपाल, अन्तपाल,आटविक स्थपति,राजश्रेष्ठी, पोठमद, नैमित्तिक,भाण्डागारिक, पौर, महत्तर, गृहपति, ग्राममुख्य लेखवाह, लेखक, भोजक, गोष्ठमहत्तर, पुररक्षक, पालक, धर्मस्थ, आयुधपाल तथा याममहत्तर ये राजा के कायों में सहायता देने वाले प्रधान अधिकारी थे । इनके कार्यों आदि का विवरण सप्रमाण मन्त्रिपरिषद तथा अन्य अधिकारी नामक अध्याय में दिया गया है।
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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