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________________ 147 था और गूढ़ समस्याओं एवं भंयकर अपराधों की स्वयं छानबीन करता था। प्रशासन को इकाई गांव के रहने पर भी नागरिक प्रशासन कमजोर नहीं था । राजा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए दूत एवं गुप्तचर नियुक्त करता था | नगर के रक्षक को पुरसक्षक" कहा जाता था । नगर के शासन के लिए पौर नामक सुगठित संस्थायें थों, जिनका उल्लेख चतुर्थ अध्याय में किया गया है। पुलिस व्यवस्था - आदिपुराण में पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी के लिए तलवर शब्द का प्रयोग हुआ है।चोर,डकैत एवं इसी प्रकार के अन्य अपराधियों को पकड़ने के लिए सारश्री नियुक्त रहते थे । तलवर का पवार्यवाची आरक्षिण' शब्द आया है । कतिपय राजकर्मचारी उत्कोच (घूम) भी ग्रहण करते थे । वे उत्कोच (घुस) लेकर अपराधी को छोड़ देते थे। राजा उनका पता चलने पर यथेष्ट दण्ड देता था | आदिपुराण के एक उपाख्यान में बतलाया गया है कि फल्गुमती ने राजा के शयनाध्यक्ष को धन देकर अपने वश में कर लिया और कहाँ कि तुम रात के समय देवता की तरह तिरोहित होकर कहना कि हे राजन् । कुबेर मित्र पिता के समान पूज्य है, अत: उन्हें अपने पास नहीं रखना चाहिए, आवश्यकता पड़ने पर ही बुलाना चाहिए । पहरेदार ने फल्गुमती के कथन का अनुसरण किया, जिससे राजा ने कुबेरमित्र को अपने यहाँ से हटा दिया । पर आगे चलकर घूसखोरी की बात प्रकट हो गई, जिससे शयनाध्यक्ष को दण्ड भोगना पड़ा । प्रान्तीयशासन पद्धति - प्रान्त को मण्डल कहा जाता था । मण्डल का शासन महामाण्डलिक अधत्रा ___ माण्डलिक करते थे । इनके विषय में तृतीय अध्याय में कहा जा चुका है। फुटनोट) 1. उत्तरपुराण 67/109-111 18. हरिवंशपुराण 17185-97 2. वही 50/4 19. वही 17/88-97 3. नीतिवाक्यामृत 28/25 20. वही 17/96 4. वहीं 28:22 21. वहीं 17/98 172 5. वही 25/23-28 22. यही 17/113-145 6. ही 28/21 23. वहीं 17/146-147 7. वहीं 28/3 24. यही 5/148-150 8. नोतियाक्यामृत 2815 25, वही 5:151-155 १.अहो 28:18 26. वही 5/156 10. कही 286 27, आदिपुराण 5/2-3 11. वहीं 28/13 28. वही 57-12 12. हरिवंशपुराण 5/471-415 29. वहीं 5/158-160 13.हरिवंशपुराण 5/417-419 30. नीतिवाश्यामृत 2819 14. वहीं 41/30 31. वहीं 28/10 15. वही 41/30 32. वही 28/11 16. वहीं 17/82 33. वाही 28/12 17. वही 17/83-84 4, वहीं 28/14
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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