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मन्त्रियों में से जो सम्यग्दृष्टि, व्रती, गुण और शील से शोभित,मन, वचन, काय का सरल, गुरुभक्त, शास्त्रों का वेत्ता, अत्यन्त बुद्धिमान, उत्कृष्ट श्रावकों (गृहस्थों) के योग्य गुणों से शोभायमान और पहात्मा होता था, राजा उसकी प्रशंसा कर उसके वचन को स्वीकार करता था। . वाद-विवाद में प्रमाण - यथार्थ अनुभव ( भुक्ति) सच्चे गवाही (माक्षी) और सन्चालेख (शासन) इन प्रमाणों से वाद विवाद की सत्यता का निर्णय होता है। जहां पर सदोष अनुभव, झूठे गवाही और झुठे लेख वर्तमान होते हैं, वहाँ विवाद का अन्त नहीं आता है। पूर्वोक्त अनुभव व साक्षी आदि जब (सभ्यों द्वारा बलात्कार व अन्यायपूर्वक एवं राजकीय शक्ति की सामर्थ्य से उपयोग में लाए जाते हैं, तब वे प्रमाण नहीं माने जाते हैं। यद्यपि वेश्या और जुआरी झूठे होते हैं. परन्तु न्यायालय में उनके द्वारा कही हुई बात भी उक्त अनुभव, साक्षी आदि द्वारा निर्णय किए जाने पर प्रमाण मानी जाती है | घरोहर (नीवी) के नष्ट होने पर जो विवाद हो उसे या तो धरोहर रखने वाले पुरुष की प्रमाणता अथवा दिव्यक्रियाओं के द्वारा निर्णय करना चाहिए। जब मुकदमे में जिस किसी प्रकार का व्यक्ति होता है तब शपथ कराकर सत्य का निर्णय करना व्यर्थ है । इसी प्रकार उपयसम्मत गनीय लिग चाप कम कर दुकान अपहरण या नष्ट करने वाले अपराधी का निर्णय करने के लिए साक्षी के अभाव में न्यायाधीश को दिव्य क्रिया (शपथ्य आदि) उपाय काम में लाना चाहिए । जो व्यक्ति शपथ आदि कूटनीति से निदोष होने पर पुनः चोरी आदि का अपराधी सिद्ध हो इसका सब धन हरण कर प्राणदान देना चाहिए । सन्यासी के वेष में रहने वाले, नास्तिक, अपने आचार से पतित व्यक्तियों से शपथ न खिलाकर युक्तियों के द्वारा उनके अपराध वगैरह की परीक्षा कर दण्ड देना चाहिए या छोड़ देना चाहिए। यदि वादी के पत्र व साक्षी संदिग्ध हों तो अच्छी प्रकार सोच समझकर निर्णय देना चाहिए यादविषाद के निर्णयार्थ ब्रह्मामणों को सोनाव यज्ञपवीत छूने की, क्षत्रियों को शस्त्र, रत्न, पृथिवी, हाथी. घोड़े आदि वाहन और पलाण की, वैश्यों को कर्ण, बच्चा, कौड़ी, रुपया - पैसा.स सोने के स्पर्श की,शूद्रों को दूध, बीज वसांप की वामी छूने की तथा (धाबो चमार आदि) कास शूद्रों को इसके जीविकोपयोगी उपकरणों की शपथ करानी चाहिए । इसी प्रकार व्रती व अन्य पुरुषों को शुद्धि उनके इष्टदेवता के चरणस्पर्श से व प्रदिषणा करने से तथा धन, चावल व तराजु को लांघने से होती है। व्याधों से धनुष लोधने की और (चाण्डाल, चमार आदि) अन्त्यवर्ण से गोले चमड़े पर चढ़ने की शपथ खिलानी चाहिए ।
पराजित के लक्षण - जो वाद-विवाद करके सभा में न आए, बुलाए जाने पर जो सभा में उपस्थित न हो, पहले कही हुई बात को बाद में कही हुई बात से बाधित करता हो, पूर्व में कहे हुए अपने वचनों पर प्रश्न पूछे जाने पर यथोचित उत्तर न दे सकता हो, अपनी गलती पर ध्यान न देकर प्रतिवादी को ही दोषी बताता हो तथा यथार्थ कहने पर सपा से द्वेष करता है उसे समझना चाहिए कि वह (वादी या साक्षी) वाद विवाद में हार गया है ।
दण्ड की आवश्यकता - अपराधी को उसके अपराध के अनुकूल दण्ड देना बाईनीत है । राजा के द्वारा प्रजा की रक्षा करने के लिए अपराधियों को दण्ड दिया जाता है, धन प्राप्ति के लिए नहीं । यदि अपराधियों पर दण्ड प्रयोग सर्वथा रोक दिया जाय तो प्रजा में मत्स्यन्याय (बड़ी मछली द्वारा छोटी मछली का खाया आना उत्पत्र हो जायेगा जिस प्रकारकठिनाई से चढ़ने