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________________ 127 -ramin में स्नान कराकर वन में बाँध दिए जाते थे, उस समय सेना ऐसी जान पड़ती थी मानों सदैव से वहां रह रहो हो83 | इस प्रकार जहां राजा पड़ाव डालता था वहाँ एक छोटा नगर सा बस जाता था ।कपड़ों से राजा का निवास, वेश्याओं के डेरे तथा दुकानों से शोभित बाजार बनाया जाता था841 राजाधिराज पद्मनाम के मन्दिर, घुड़साल, वेश्याओं के ढेरे और बाजार आदि को देखकर पीरले आने वालो ग्रजा ने समझा कि यही हमारे रहने का स्थान है । राह में चलने से थके हुए परिचित पुरुषों के सत्कार के लिए पटमय निवास ( कमाता कहार पर खड़ी हुईवश्यायें भनियों को वहाँ की रहने वाली जान पड़ों । सेना को ऐसे स्थान पर ठहराया जाता था, जहाँ बाँस, लकड़ी तथा जल सुलभता से पिल सके । सेनापति पहले से ही जाकर ऐसी जगह देख लेता था | शीघ्र ही आगे गए हुए सेवक उस भूमि को साफ कर सब और निर्मित कपड़ों के सामान्य डेरे (पटमण्डप) तथा राजाओं के ठहरने योग्य बड़े-बड़े तम्बुओं से युक्त कर देता था और प्रत्येक डेरे पर पहिचान के लिए अपनेअपने चिन्ह खड़े कर दिए जाते थे । ऊँट के ऊपर से हथियारों का बोझा उतारो । इस जमीन को साफ करो, ठण्डा पानी लाओ, महाराज के रहने की इस जगह से डेरे को उखाड़कर इसके चारों तरफ कनात (काण्डपट) लगाकर उसे फिर सुधारो, यहाँ से रथ को हटाओ और घोड़े को बाँधो, बैलों को जंगल में ले जाओ, तू घास के लिए जा, इत्यादि रूप से अधिकारी सेवकों को आजा देते थे। युद्ध कालीन स्थिति - शत्रु सेना का जब आक्रमण होता था तब वह समस्त देश को नष्टभ्रष्ट करने का प्रयत्न करती थी । वह शिष्ट नागरिकों का भी अपमान करती हुई आगे बढ़ती थी । विशेषकर उसका लक्ष्य राजधानी पर अधिकार करना होता था, क्योंकि शत्रुओं की मेना से भयभीत प्रजा हरणकिए धन से बचे हुए बहुमूल्य पदार्थों तथा पुत्रकला आदि के साथ राजधानी में आ जाती थी । युद्ध के समय कभी-कभी राजधानी चारों और से घिर जाती थी और नगर में घास, फूस, ईंधन और पानी का पहुँचना दुर्लभ हो जाता था । विजय प्राप्ति के लिए सेना की व्यूह रचना होती थी । व्यूह रचना के कारण सेना की पंक्ति को किसी दिशा से तोड़ना बहुत कठिन होता था । सैन्य संचालन में राजा का महत्त्वपूर्ण योग होता था । जिस ओर सैनिकों का उत्साह शान्त दिखाई देता था उस और पुरस्कार आदि के द्वारा राजा ठन्हें उत्तेजित कर देता था तथा कहीं शिथिलता दिखाई दी तो उसे साम, दान आदि उपायों से शान्त किया जाता था सजा के समस्त राजपुत्र भी सैन्य संचालन में योग देते थे । जो सेना अत्यधिक बलशाली और साहसी होतो थी तथा जिसके राजा का कोष विशाल होता था, उसको जोतना कठिन होता था96 । युद्ध करते समय नायक अपनी सारी शक्ति को दाव पर लगा देते थे। उनके मन में यह भावना रहती थी कि हमारे ग्राम, आकर (खनिज क्षेत्र),पुर तथा जितने पो देश हैं तथा दोनों सेनाओं के पास जो भी सम्पत्ति है वह उसी की हो जाय जो संग्राम के बाद बचा रहे" । युद्ध में अनेक देश तथा भाषा वाले सैनिक भाग लेते थे । योद्धाओं में युद्ध करते समय आज्ञापालन, कृतज्ञता और स्वाभिमान ये तीन भावनायें प्रमुख रूप से होती थी। कुछ लोग अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करने के लिए ही लड़ना चाहते थे।कुछ सोचते थे देश, ग्राम.नगर तथा आकरों का शासन देकर तथा उत्तम वस्त्र, आभूषण, पान आदि देकर जिस राजा ने हमें ही नहीं, हमारी स्त्री तथा बच्चों
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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