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________________ " 115 लेकर अच्छी तरह जाँच पड़ताल कर आय-व्यय को विशुद्ध करे। जब आय - व्यय करने वाले अधिकारियों में विवाद हो जाय तब राजा जितेन्द्रिय व राजनीति प्रधान पुरुषों से परामर्श कर उसका निश्चय करें | - राजकीय आय के साधन कर जिस राज्य में दूसरे देश की वस्तुओं पर अधिक कर लगाया जाता है तथा जहाँ के राजकर्मचारी बलात् थोड़ा मूल्य देकर व्यापरियों से वस्तु छीन लेते वहाँ अन्य देशों से माल आना बन्द हो जाता है* । क्योंकि लकड़ी की हांडी में एक ही बार पदार्थ पकाया जाता है" । समुद्र यदि प्यासा हो तो संसार में जल कहाँ से हो सकता है ? इसी अधिक बढ़ने की वृद्धि नहीं होती है। जो राजा व्यापरियों से से थोड़ा भी अधिक धन लेता है, उसे महान् हानि होती है"। राजा ने जिनको पहले करमुक्त किया है, उनसे पुन: कर न लेकर वह उनको अनुगृहीत करे" । न्याय से सुरक्षित (जहाँ योग्य कर लिया जाता है और व्यापारियों के क्रय-विक्रय योग्य वस्तुओं से व्याप्त नगरी राजाओं के मनोरथपूर्ण करती है। कहने का तात्पर्य यह कि राजा को प्रजा से देशानुरूप कर ग्रहण करना चाहिए। - 2. अधिकारियों से प्राप्त धन - (1) नित्यनिरीक्षण (सदा जाँच पड़ताल करना ), (2) कर्मविपर्यय ( उच्चपदों से साधारण पदों पर नियुक्त करना) (3) प्रतिपतिदान (छत्र, चमर आदि बहुमूल्य वस्तुयें भेंट में देना इन तीन उपाय से राजा राज्यधिकारियों से (रिश्वत द्वारा संचित धन प्राप्त कर सकता है" । केवल एक बार धोया हुआ वस्त्र जिस प्रकार स्निग्धता (चिकनाई) को नहीं छोड़ता है, उसी प्रकार अधिकारी लोग भी पके हुए फोड़े के समान (बिना ताडन, बन्धन आदि किए) गृह में रखे हुए (रिश्वत के ) धन को नहीं बतलाते हैं"। अधिकारियों को बार-बार ऊँचे पदों से पृथक करके साधारण पदों पर नियुक्त करने से राजाओं को (उनके द्वारा गृहीत) धन मिल जाता है"। अधिकारियों में आपसी कलह होने पर राजाओं को खजाने के मिलने के समान महालाभ होता है"। अधिकारियों को सम्पत्ति राजाओं का दूसरा कोश है" । - 3. व्यापारियों से प्राप्त धन जब व्यापारी लोग बर्तनों आदि के व्यापार में मूलधन से अधिक धन कमाते हों तब राजा को व्यापारियों के मूलधन से दूना धन देकर अधिक धन जब्त कर लेना चाहिए" | 4. अन्य देश के राजाओं से प्राप्त धन विजय प्राप्त होने पर अन्य देश के राजा लोग उपहार के रूप में धन देते थे । इस प्रकार उपहारस्वरूप रत्नों का समूह" क्षौम (रेशमी वस्त्र ), अंशुक, दुकृत्म, चीनी वस्त्र, हाथी, तुरूष्क, कम्बोज, वाल्ट्रीक, तैतिल, आरट्ट, सैन्धव, बनायुज, गान्धार और वापि आदि देश में उत्पन्न कुलीन घोडे, केशर, अगरु, कपूर, स्वर्ण, मोती औषधियों का समूह, गोशीर्षचन्दन आदि वस्तुयें प्राप्त होती थीं। कोववृद्धि के उपाय राजा को चाहिए कि अपने समस्त देश में किसानों द्वारा भली भाँति खेती कराए और धान्य आदि का संग्रह करने के लिए उनसे न्यायपूर्ण उचित अंश ले । ऐसा होने पर उसके भण्डार आदि में बहुत सी सामग्री इकट्ठा हो जायगी और उसका देश भी पुष्ट होगा" । जिस प्रकार दूध देने वाली गाय से उसे बिना किसी प्रकार की पीड़ा पहुँचाए दूध दुहा जाता है. -
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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