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________________ द्वितीय अध्याय जैन पूजा - काव्य के विविध रूप इस अध्याय में पूजा - काव्य के अन्तर्भेद और उनकी रूपरेखा का वर्णन किया गया है। पूजा-काव्य के मुख्य चार अन्तर्भेद होते हैं - ( 1 ) स्तव एवं स्तोत्रकाव्य, (2) मंगलकाव्य, (3) विनयकाव्य एवं भक्तिकाव्य (4) कीर्तन साहित्य एवं आरती साहित्य | (1) संस्कृत व्याकरण के कृदन्त प्रकरण में स्तुति अर्थक स्तु धातु से भाव में अप् प्रत्यय करने पर स्तव शब्द सिद्ध होता है। एवं स्तु धातु से ल्युट् (यु-अन) प्रत्ययन जोड़ने पर स्तवन शब्द सिद्ध होता है इन दोनों शब्दों का सामान्य अर्थ स्तवन ( गुणों का कीर्तन ) होता है। स्तुति अर्थवाली स्तु धातु से ति प्रत्यय जोड़ने पर स्तुति शब्द और स्तु धातु से त्र प्रत्यय जोड़ने पर स्तोत्र यह शब्द निष्पन्न होता हैं। इन दोनों का सामान्य अर्ध स्तुति करना होता है। जैन दर्शन की दृष्टि से विचार करने पर स्तव और स्तुति में विशेष अन्तर इस प्रकार है- अनेक पूज्य आत्मा के गुणों की संक्षेप से या विस्तार से प्रशंसा करना स्तव अथवा स्तवन कहा जाता है और एक पूज्य आत्मा या महात्मा के गुणों का संक्षेप या विस्तार से वर्णन करना स्तुति या स्तोत्र कहा जाता है। सयलं गेक्कं क्क गहिवार सवित्थरं ससंखेवं । सत्यथयथु धम्म कहा होइ नियमेण ॥ । तात्पर्य - जिसमें सर्ववस्तुओं का अर्थ अथवा सर्व महात्माओं का गुणवर्णन विस्तार से या संक्षेप से किया जाए उसको स्तव या स्तवन कहते हैं। जिसमें एक अंग, एक वस्तु या एक महात्मा का वर्णन विस्तार से था संक्षेप से किया जाए उसको स्तुति या स्तोत्र कहते हैं। जहाँ श्रुतज्ञान के एक अंग के एक अधिकार का अर्थ (वर्णन ) विस्तार से या संक्षेप से कहा जाए उसे वस्तु कहते हैं। जिसमें प्रथमानुयोग (कथाशास्त्र) आदि 1. नेमिचन्द्राचार्य गो. कर्मकाण्ड सं. आर्यिका आदिपती. प्र. - दि. जैन ग्रन्थमाला श्री महावीर जी ( राजस्थान ), 1980, पृ. 19 90 :: जेन पूजा काव्य एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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