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________________ जा चुका है। विक्रम की दसवीं शती में इसकी प्रतिष्ठा, महाराज चामुण्डराय द्वारा करायी गयी थी। यद्यपि इस प्रतिमा को विन्ध्यगिरि पर खगासन से स्थित एक हजार वर्ष हो गये हैं, तीनों ऋतुओं के ग्रीष्म, वर्षा तथा शीत गुणों का प्रभाव होने पर भी उसकी कान्ति तथा पालिश में अल्प भी परिवर्तन नहीं हुआ है अपितु नवीनता छलकती है। इसकी गणना संसार के आश्चर्यों में की जाती है, इसके अतिरिक्त 41 फीट ऊँची श्री बाहुबलि की कायोत्सर्गासन प्रतिमा दक्षिण के कारकल, वैणूर, धर्मस्थल में है और 35 फीट ऊंची प्रतिमा वेरपुर में है। उड़ीसा प्रान्त के खण्ड गिरि पर्वत की हाथी गुफ़ा के शिलालेख (द्वितीय शती ईशा पूर्व) से स्पष्ट है कि भगवान महावीर के निर्वाण से पूर्व तीर्थंकरों की मूर्तियाँ बनायी जाती थीं। मथुरा के कंकाली टीले की खुदाई के अवशेषों एवं शिलालेखों से भी प्रमाणित होता है कि जैन मूर्तियाँ भगवान महावीर के समय से पहिले बनती रही हैं। मोहनजोदड़ों की खुदाई से निकली हुई मूर्तियों, योगियों की मूर्तियाँ, मूर्ति निर्माणकाल को, ईशा से हलारों वर्ष पहिले ले जाती हैं। इसके अतिरिक्त सरस्वती, पदमावती, अम्यिका आदि, तीर्थकर-भक्त देवियों की मूर्तियाँ भी जैन मन्दिरों में पायी जाती हैं। इसके अतिरिक्त देवगढ़ क्षेत्र, एलोरा की गुफ़ाओं, खजुराहो क्षेत्र बूढ़ी चन्देरी, आहारक्षेत्र, पपौस क्षेत्र, आबू पर्वत, गिरनार, राजगिरि, इन प्राचीन तीर्थक्षेत्रों में हजारों पूर्तियों खण्डित तथा अखण्डित हैं। पूजा के उपकरण या आवश्यक साधन अय पूजा के उपकरण (साधन) पर विचार किया जाता है। पूजा के साधन दो प्रकार के होते हैं-(1) अन्तरंग साधन या निश्चय साधन, (2) व्यवहार साधन या बहिरंग साधन। भौतिक पदार्थों से मोह या तृष्णा को दूर कर तीर्थकर, सिद्ध, अर्हन्त आदि पूज्य आत्माओं के गुणों में श्रद्धापूर्वक अनुराग या चिन्तन करना अन्तरंग साधन है, दूसरे शब्दों में विशुद्ध (भाव वा विचारों को) अन्तरंग साधन कहते हैं। अन्तरंग साधन पूर्वक बाह्य आवश्यक साधनों का प्रयोग करना बाह्य साधन है। इसी विषय को जैनाचार्यों ने पूजा-ग्रन्थों में किसी भी पूजन या विधान के आदि में अनिवार्य रूप से कहा है विधि विधातुं यजनोत्सवेऽहं, गेहादिमूर्छामपनीदयामि। अनन्यचित्ताकृतिमादधामि, स्वर्गादिलक्ष्मीमपि हापयामि।' 1. भक्तापरमण्डत पूजा : सं. मोहनलाल शास्त्री, जबलपुर, सन् 1970, सं.२. पृ.-14. 84 :: जैन पूजा-काम्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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