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________________ गुरु की मूर्ति को नहीं मानते। मानव के सामने दोनों ही पक्ष उपस्थित होते हैं कि या तो वाणी की मूर्ति के समान महात्मा की मूर्ति को मान्यता दो अथवा महात्मा गुरु की मूर्ति के समान, वाणी की मूर्ति को भी मान्यता मत दो। एक कोई मूर्ति को मान्यता देना और एक कोई मूर्ति का मान्यता नहीं देना - यह युक्तिपूर्ण मान्यता नहीं है। यदि बुद्धिमान मानव शास्त्र (ग्रन्थ) को मूर्तिरूप नहीं मानते हैं तो किस रूप से मानते हैं। यदि किसी चिह्न, आकार, मुद्रा या प्रतिनिधि रूप लक्षण से मानते हैं तो यही मूर्ति की मान्यता अनिवार्यरूप से ही सिद्ध हो जाती है । द्वितीय युक्ति यह भी है कि यदि आप शास्त्र को मूर्ति रूप से नहीं मानते हैं तो उसका प्रदर्शन नहीं करना चाहिए, न आरती करनी चाहिए और न नमस्कार करना चाहिए। तृतीय युक्ति यह है कि यदि शास्त्र को मूर्ति नहीं मानते हैं तो उसका अपमान, अविनय या निन्दा करने पर, शास्त्रपूजक के चित्त में दुःख, दण्ड देने की भावना और प्रतिक्रिया (बदला लेना) के विचार नहीं उठना चाहिए। पर विश्व में सर्वत्र देखा बह जाता है कि किसी भी सम्प्रदाय, समाज, दर्शन अथवा वर्ग के धर्म ग्रन्थ (शास्त्र) जो कि काग़ज़ आदि का बना हुआ, अक्षरों में मुद्रित, वस्त्र से वेष्टित है, उसकी निन्दा, अपमान या अविनय करने पर, साम्प्रदायिक द्रोह, मारपीट, अग्निकाण्ड तथा प्रतिक्रिया के काण्ड देखे जाते हैं, अपने से अन्य धर्मों के ग्रन्थ, मूर्तियाँ, मन्दिर आदि का विध्वंस किया जाता है और अपने धर्म एवं संस्कृति का प्रचार किया जाता है। विज्ञान की दृष्टि से मूर्ति का प्रभाव आधुनिक भौतिक विज्ञान की दृष्टि में मूर्ति की मान्यता सिद्ध होती है और उस मूर्ति का मानव के हृदय पर तथा अन्य पदार्थों पर बहुत प्रभाव सिद्ध होता है। जैसे एक्सरे विज्ञान का एक आविष्कार है। वह शरीर के अन्दर स्थित हड्डी आदि वस्तुओं का दिग्दर्शन कराता है वह एक प्रकार की मूर्ति ही है जिससे अनेक प्रकार के ज्ञान (शारीरिक) होते हैं, उसका प्रभाव मानस पटल पर बहुत स्पष्ट रूप से सिद्ध होता है। दूसरा वैज्ञानिक आविष्कार-छवि- अंकन ( छायाचित्र) होता है। कैमरा से जिस पदार्थ की छाया (कान्ति) ली जाती है, उसे छायाचित्र कहते हैं, इसमें पदार्थों का चित्रण स्थिर रूप से होता है जो पदार्थ के अनुकूल सदा एक-सा बना रहता है, इस चित्र का चित्त पर अधिक प्रभाव होता है। जैसे वीर पुरुष, महात्मा का प्रभाव वीरतापूर्ण होता है। श्रृंगार मय मूर्ति (चित्र) से शृंगार का प्रभाव, विरागतापूर्ण मूर्ति से वैराग्य का प्रभाव, हास्यमय मूर्ति से हास्य का प्रभाव, भयानक चित्र से भय का प्रभाव, और शान्त चित्र से शान्ति का प्रभाव होता है, इत्यादि । तृतीय वैज्ञानिक आविष्कार चलचित्र प्रसिद्ध है, इसमें पदार्थों के चित्र चलने 78 :: जैन पूजा-काव्य एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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