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________________ न त्वं मूर्तिन मूर्तिस्त्वं, त्वं त्वमेव सा ह्येव सा। मूर्तिमालम्ब्य त्वद्भक्ताः, मूर्तमन्तमुपासते॥ सारांश--हे भगवन् ! आप मूर्ति नहीं हैं और न मूर्ति आप हैं, आप आप हैं और मूर्ति मूर्ति है, तथापि आप के भक्त मूर्ति का आश्रय लेकर मूर्तमान आप की उपासना करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि माल्या के गुणों का स्मरण मूर्ति के माध्यम से करना मूर्तिपूजा का लक्ष्य है, वह आत्मशुद्धि के लिए उपयोगी है, इससे भिन्न मूर्तिपूजा नहीं कही जा सकती। मूर्तिपूजा यास्तविक उपयोगी है अक्षरावगमलब्धये यथा, स्थूलबर्तुलद्रषत्परिग्रहः । शुद्धबुद्धपरिलब्धये तथा, दारुमृण्मयशिलामयार्चनम्।' तात्पर्य-जिस प्रकार अक्षरों का ज्ञान कराने के लिए छात्रों के समक्ष छोटे-छोटे कंकड़ आदि मिलाकर अक्षरों का आकार शिक्षण की शैली से सिखाया जाता है, उसी प्रकार शुद्ध-बुद्ध परमात्मा का ज्ञान कराने के लिए लकड़ी, मिट्टी या पाषाण की मूर्ति का प्रतीक रूप में उपयोग किया जाता है। जिनेन्द्रदेव की मुद्रा (मूर्ति) का मूल्यांकन गरलापहारिणी मुद्रा गरुडस्य यथा तथा जिनस्याऽप्येनसो हन्त्री दुरितारातिपातिनः।' ___ भावसौन्दर्य-जिस प्रकार गरुडमुद्रा दर्शनमात्र से सर्य के विप का नाश करती है, उसी प्रकार जिनेन्द्रमुद्रा (मूर्ति) भी पापों का नाश करनेवाली होती है अर्थात् वीतराग जिनदेव की मूर्ति के दर्शन-पूजन से पाप-ताप विनष्ट हो जाता है। विना न्यासं न पूज्यः स्यान्नबन्धोऽसी वृषत्समः । सुखं न जनयेनू न्यासवर्जितः प्राणिनां क्वचित्॥ सारांश-प्रतिष्ठा किये बिना मूर्ति पूज्य नहीं होती, बिना प्रतिष्ठा के वह पाषाण के समान है। अप्रतिष्ठितमूर्तियों से प्राणियों को पुण्य प्राप्त नहीं होता। आ. वसुनन्दि ने भी इसी प्रकार प्रतिमा के प्रत्येक अंग में मन्त्रन्यास, 48 संस्कारों की स्थापना, नेत्रोन्मीलन, श्रीमुखोयाटन, सूरिमन्त्र आदि महामन्त्रों का अपने प्रतिष्ठा पाठ में उल्लेख किया हैं। इसलिए निवास गृहों में प्लास्टिक, काग़ज़, 1. नोकमान्य तिलक : गोतारहस्य, पृ. 413 2. आधारसार , 8. जिनपूजा एवं जिननिर : म. पं. नायलान शास्त्री, प्र. बीन्ग्रन्थमालासमिति इन्दौर, 1989, पृ. 171 *:: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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