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________________ परिशिष्ट : चार जैन पूजा-काव्यों में मण्डल जैन पूजा-काव्य में मण्डल रचना का मूल्यांकन पज्य परमदेवों के प्रकार. परमेष्ठीदेवों के भेद, प्रमुख गुण और उनके प्रकारों का एवं व्रत, तीर्थक्षेत्र इनको सामान्यदृष्टि से जानने के लिए जो रेखाकार चित्र बनाया जाता है उसे मण्डल (मोडना) कहते हैं, इसको यथायोग्य फलक (पाटा) पर घनाकर प्रतिपा के या यन्त्र के सामने स्थापित किया जाता है। मन्त्र सहित रेखाचित्र का यन्त्र कहते हैं। जिसका उपयोग विशेष पूजा, विधान, प्रतांद्यापन, तीर्थक्षत्र पूजा और प्रतिष्ठाकार्यों में नियमतः किया जाता है। इसी प्रकार ग्रहशान्ति, नीनगृहोद्घाटन, अखण्डकीर्तन, शान्तिकर्म आदि विशेष अवसरों पर भी मण्डल अधवा यन्त्र का उपयोग करना अनिवार्य है। इस धार्मिक पूजा अनुष्ठान आदि में जेनाचार्या द्वारा प्रणीत यह मण्डल प्रणाली चैज्ञानिक एवं युक्तिपूर्ण है। राष्ट्र, देश, प्रान्त, प्राकृतिक दृश्य, पर्वत, नदी, क्षेत्र, उद्यान आदि वस्तुओं को जानने के लिए आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी रेखाचित्र के आविष्कार किये हैं। व्यंग्य अर्थ को समझने के लिए व्यंग्यचित्र, पकानों में रेखाचित्र और स्पष्ट एवं कटिन विषय को सरलता से समझने के लिए रेखाचित्र (मण्डल के उपयोग-लोकव्यवहार में किये जाते हैं। महाविद्यालयों, विद्यालयों आदि शिक्षण संस्थाओं में रखाचित्र, नक्शा आदि के द्वारा छात्र पदार्थ का ज्ञान प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार पूजा-काव्यों में भी उपयोगी मण्डलों रेखाचित्रों का प्रयोग सार्थक है। 000
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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