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भक्ति के बिना दुष्परिणाम
यावन्नोदयते प्रभापरिकरः, श्री भास्करो भासयन् तावद् धारयतीह पंकजवनं निद्राति भारश्रमम् । यावत् त्वच्चरणद्वयस्य भगवन्, न स्वाठप्रसादोदयः तावत् जीवनिकाय एष वहति प्रायेण पापं महत् ॥ ' मावसोन्दर्य इस विश्व में किरणों से व्याप्त, चमकता हुआ सूर्य जब तक उदित नहीं होता है, तब तक कमलों का समूह अत्यन्त निद्रा के भार को धारण करता है अर्थात् प्रफुल्लित नहीं होता। इसी तरह लोक में जब तक हे भगवन्! आपके चरणों का प्रभावक दर्शन नहीं होता है तब तक प्राणियों का समूह अज्ञानान्धकार में सुप्त होकर महान् पापों को धारण करता है।
1. धर्मध्यान दीपक पू. 172
जैन पूजा काव्यों का महत्त्व : 367