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________________ आचार्य जिनसेन कृत आदिपुराण (पर्व 17, श्लोक 252) में भरत द्वास तथा पर्व 23, श्लोक 106 में इन्द्रां द्वारा भगवान् की पूजा के प्रसंग में अष्टद्रव्यों का वर्णन आया इस प्रकार उक्त आचार्य कथित प्रमाणों से यह सिद्ध हो जाता हैं कि नागरिक गृहस्थों के दैनिक कर्तव्यों में देवपूजा का प्रथम महत्त्वपूर्ण स्थान है। अब कृतिकर्म के मूलापान का दिग्दर्शन माया जाता है ! स्तुतिः पुण्यगुणोत्कीर्तिः, स्तोता भव्यः प्रसन्नधीः । निष्ठितार्थो भवास्तुत्यः फलं नैश्रेयसं सुखम् ॥ तात्पर्य-परमात्मा के पवित्र गुणों का कीर्तन करना स्तुति है। यह पूजा का एक प्रकार है। भव्य (मुक्ति का पात्र) प्रसन्नचित्तवाला या निर्मलबुद्धिमान् मानव स्तोता कहा जाता है। कृतकृत्य परमसिद्ध परमात्मा आप स्तुत्य (स्तुति के योग्य है) और भक्तिपूर्वक स्तुति या पूजा का फल स्वर्ग आदि को विभूति प्राप्त करते हुए मुक्ति को प्राप्त करना है। इस भक्ति मार्ग के पदचतुष्टय को दूसरे शब्दों में पूजा-पूजक-पूज्य और पूजाफल इस पदचतुष्टय से कहा जाता है। भगवत्पूजा का एक प्रकार (भेद) स्तोत्र साहित्य महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करता है जिसका वर्णन द्वितीय अध्याय में किया जा चुका है। उसके परम मूल्यांकन का दिग्दर्शन यहाँ पर कराया जा रहा है। सबसे प्रथम संस्कृत स्तोत्र साहित्य में सहस्रनामस्तोत्र प्रसिद्ध एवं विशालकाय स्तोत्र कहा जाता है। भगवजिनसेन आचार्य ने स्वरचित सहस्त्रनाम स्तोत्र की पीठिका के अन्त में दर्शाया है : एवं स्तुत्वा जिनं देवं, भक्त्या परमया सुधीः । पठेदष्टोत्तरं नाम्नां सहस्रं पापशान्तये ।। तथा इस स्तोत्र के प्रथम श्लोक में भी स्तोत्र का मूल्यांकन दर्शाया है जो कि स्तोत्र पाठक के मानस पटल को पवित्र कर देता है, वह इस प्रकार है : प्रसिद्धाष्टसहसेद्धलक्षणं, त्वां गिरांपतिम्। . नाम्नामष्टसहस्रेण, तोष्दुमोऽभीष्टसिद्धये ॥ क्रमशः श्लोकदय का सारांश-(1) इस प्रकार विद्वान् श्रेष्ठ भक्ति से जिनेन्द्रदेव का स्मरण कर पाप या दुष्कर्म की शान्ति के लिए जिनेन्द्रदेव के एक हजार आठ नामों का पाठ करें। 1. भारत के दि. जैन तीधं : प्रथम भाग : सम्पा. बलभद्र जैन, प्र... भारत दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बई, सन् 1974, पृ. 16-12, प्राक्कथन । . धर्मध्वानदीपक : सं. श्री जितसागर जी महाराज. प्र. - ब. लाइमल जैन महावीर जी. 1976, पृ 501 ५. ज्ञानपीठ पूजाजंलि. पृ. 4.५5 । 844 : जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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